बुरांश" एक जंगली फूल.....इसके विशालकाय पेड़ को मैं गमले मै उगाने का प्रयास कर रहा हूँ , मै चाहता हूँ कि इसकी सुन्दरता और इसकी महक से कोई भी बंचित न रह जाय .......
रविवार, 24 अक्तूबर 2010
...........कोई गाँव था यहाँ पर.
पनघट से याद आया ,
कोई गाँव था यहाँ पर
ढूढें कहाँ उसे अब
इन शहर कि गलियों में ll
चौपाल में थी रोनक,
खलिहानों में थी खुशियाँ
खेतों में गुनगुनाते
थे लोग सीधे-सादे l
बरगद से याद आया ,
घनी छांव थी यहाँ पर ,
ढूढें कहाँ उसे अब इन
शहर कि गलियों में ll
मासूम और नटखट,
बचपन था वो हमारा
फोड़ी थी मटकी उसकी
इसी ताल के किनारे l
कागज से याद आया
कोई नाव थी यहाँ पर
ढूढें कहाँ उसे अब
इन शहर कि गलियों में ll
पनघट से याद आया,
कोई गाँव था यहाँ पर ,
ढूढें कहाँ उसे अब
इन शहर कि गलियों में ll
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4/10
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास
hmmm... sahi hai na to yaha gaanw jaisi shaanti hai aur na hi apnapan... acchhe kavita...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंपूजा जी और उस्ताद जी आप मेरे ब्लॉग पै आये और मेरा मनोबल बढाया इसके लिए मैं आपका आभार व्यक्त करता हूँ ,निस्पक्ष्य और सार्थक लेखन मेरा उदेश्य है और मैं अपने इस उद्श्य में सफल होऊं इसके किये आपका सहयोग और समर्थन आवश्यक है ,
जवाब देंहटाएंइस उम्मीद के साथ...............
bahut sundar!!
जवाब देंहटाएंउजड़ते गाँव के बीच अपने पीछे छूट चुके अतीत को पकड़ने का अच्छा प्रयास है भाई. ............और सच्चाई भी यही है कि विकास की भेंट अपने गाँव, पनघट, खेत खलिहान सभी कुछ चढ़ रहे हैं. कहाँ ठौर मिलेगी............
जवाब देंहटाएंपनघट से याद आया,
जवाब देंहटाएंकोई गाँव था यहाँ पर ,
ढूढें कहाँ उसे अब
इन शहर कि गलियों में ......
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punah padha , aur bhi achhi lagi kavita.
.
बहुत सुन्दर कविता| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएं@ परमजीत बाली जी ,
जवाब देंहटाएं@ सुधीर रावत जी
@ patali the village
मैं आपका आभार और अभिनंदन करता हूँ की आप मेरे ब्लॉग पर आये, निश्चित ही मेरा मनोबल बढ़ा है
निस्पक्ष्य और सार्थक लेखन मेरा उदेश्य है और मैं अपने इस उद्श्य में सफल होऊं इसके किये आपका सहयोग और समर्थन आवश्यक है ,
सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव. एक खोये हुए स्थल को खोजने का जज़्बाती प्रयास।
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