मंगलवार, 2 मार्च 2010

होली के बहाने......

"सचिन को 'भारत-रत्न' मिलना चाहिए......." .जब मैं यह पोस्ट लिख रहा था उसी दौरान  मुझे  याद आया की कभी  'Daughter of Kumaon '  अर्थात  'कुमाउनी च्येली' अर्थात  मैडम शेफाली  पाण्डेय जी  अपनी एक पोस्ट में लिखती हैं  की "एक ठो पुरूस्कार इधर भी....." तो  मैडम for your kind information की यदि आपको कोई पुरूस्कार मिल भी जाता है तो उससे आपके सपने पूरे होने वाले नहीं हैं ,  वो क्यों ? सुनिए........
क्यों की आपका योगदान साहित्य के क्षेत्र में हो सकता है और आप भली भांति जानते है की साहित्य के क्षेत्र में दिए  जाने वाले पुरुस्कारों का विवरण क्या होता है ? एक शाल, एक प्रशश्ति  पत्र और शगुन के तौर पर सवा, पच्चीस सौ या इक्यावन सौ रुपये , स्मरण रहे की सर्दी हो या गर्मी शाल आपको ओढ़नी ही पड़ेगी क्योंकि  साहित्य अकादमी  इससे ज्यादा आपको कुछ नहीं दे सकती है ,यदि अधिक की कामना रखते है तो क्रिकेट  खेलिए और  भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड से आग्रह कीजिये , क्योंकी साहित्य अकादेमी को सरस्वती के उपासक  संचालित करते है जबकि भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड को लक्ष्मी के उपासक, बहरहाल  मेरा  समर्थन और शुभकामनाये आपके साथ हैं  और सचिन के साथ भी.............
फिलहाल कल परसों में श्री धीरू सिंह जी के "दरबार" में फरियाद ले कर गया था ,वहां  देखा ना तो महाराज धीरू सिंह जी ही आसीन थे ना ही उनके दरबारी  ! हाँ उनके दरबान को मैं अपनी फरियाद थमा के वापिस लौट आया.
धीरू सिंह जी आपकी पोस्ट पढ़ी जिसमें अपने लिखा था "आने दो ऊंट को पहाड़ के नीचे"................. जी हाँ............. विचार आपके अपने है और महत्वाकांक्षाएं (या कुछ करने का जज्बा) बाबा रामदेव जी के ................ शीर्षक में दम है फिर भी मेरी आपसे गुजारिश है की शुभ-शुभ बोलियेगा हालाँकि शुभ जैसा कुछ भी  होने वाला नहीं है और हाँ आज एक समाचारपत्र में खबर छपी थी की आने वाले चुनाव से पहले बाबा जी पार्टी की घोषणा भी कर देंगे अर्थात अब आशंका के बादल छंट चुके है बना कर रखियेगा हो सकता है आपको भी टिकट की जरुरत पड़ जाये.
उलूक टाइमस  के संस्थापक संपादक आदरणीय उलूक महोदय कृपया बताने की कृपा करे की गुलिस्तान को बर्बाद करने में उल्लुओं की क्या भूमिका हो सकती है आपको ये बता दूं की ये बेचारे रंगबिरंगे उलूक यूँ  ही बदनाम किये  गए है.  मैं दावे के साथ कह सकता हू की गुलिस्तान की बर्बादी में सफ़ेद एवं उज्जवल बगुलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है.  देखने में सीधे- सादे,  साफ़-सुथरे इन बगुलों पर गौर कीजियेगा. इस बात पर मत जाईयेगा की इन्हें "बगुला- भगत" भी  कहा  जाता है.  ग्लेशियरों   के पिघलने से आपको दुःख होता है सो दुःख की इस घड़ी में मैं भी आपके साथ हू ,       
मानव रूप में कब अवतार लेंगे बताने का कष्ट करे क्यूंकि मजबूरी में ही सही आपको उल्लूक कह कर गाली नहीं देना चाहता हूँ अच्छा नहीं लगता है ....ओह... हाँ......गाली से याद आया.....
भोपाल से कविता रावत BPL जी को गाली से सख्त नफरत है.. नफरत तो उन्हें पुरुष प्रधान समाज से भी है  आखिर क्यों न हो सदियों से आप विपक्ष में बैठती आ रही हो जाहिर है तकलीफ तो होगी ही , किसको नहीं होती है सत्ता की चाहत , चुनाव से पूर्व चुनाव करवा सकते है तो ठीक है अन्यथा पुरुष के हाथों  से यदि आपको सत्ता छीननी ही  है तो पलट दीयिये तख्ता , वैसे भी दुरूपयोग करने के लिये आपको बहुत सारे  अधिकार प्राप्त है किन्तु स्मरण रहे ऐसा करने से आप  दुनिया से अलग-थलग पड़ सकते है लोकतंत्र की पुन: बहाली के लिए आप पर दबाव डाला जा सकता है और ढेर सारे  प्रतिबन्ध  आपको झेलने पड़ सकते है, श्रीमान रावत जी क्षमा चाहूँगा, क्या बगावत की बू आप तक नहीं पहुंची अब तक, बेशक आप मुझे गाली  दे सकते हैं क्योंकि   मुझे गालियों से कोइ  परहेज नहीं  है , क्योंकि  मैं  गालियों में भी अपनापन महसूस करता हू , मेरी  चाची जी  (जो अभी गाँव में हैं ) जब किसी पर गुस्सा होती है तो उनके मुह  से सिर्फ एक ही गाली निकलती है वो ये की  "धत्त! तेरा भला हो............ "आज के  समाज में इस तरह की गालियाँ कितना असर कर सकती है आप अंदाजा लगा सकते है, मैं पंजाबियों  के बीच में रहता हूँ  जहा पर किसी भी बात का  आगाज  एक गाली से होता है, हालाँकि बात के अंत में "जी" लगाना भी मैंने पंजाबियों  से ही सीखा है ,बहरहाल ............
"ऊँचे पहाड़ों से जीवन के स्वर" सुनने और पढने में बहुत अच्छे लगते है ,किन्तु पहाड़ों की ऊँचाई निरंतर घटती जा रही है , विकास के नाम पर पहाड़ों का जिस गति  से दोहन किया  जा रहा है वो दिन दूर नहीं जब जीवन के लिये तरस जायेंगे ये पहाड़, पलायन एक प्रमुख मुद्दा है जिसे रोक पाना फिलहाल मुमकिन नहीं है,  खुद जीवन की भीख मांग रहे इन पहाड़ों से जीवन के स्वर आपको सुनायी देते है शुभ संकेत है लेकिन .................
होली की पूर्व संध्या पर मैं  विजिट करता हुआ  देसी ठेके की और निकल गया सोचा था वहां पर प्रबल जी (प्रबल प्रताप सिंह जी) मिलेंगे और कहेंगे  मैं  यहाँ भी हूँ .... लेकिन आप वहां नहीं थे अच्छी बात है. बहरहाल ऑरकुट से लेकर ट्विट्टर तक आप  कहाँ नहीं है / आपकी एक पोस्ट में आत्म हत्या करते बच्चों की तस्वीरे देख कर लगता है यह एक भयानक संकेत है भविष्य के लिए , अक्सर हम लोग बच्चों  में बढ़ रही  इस आत्महत्या  की प्रवर्ती के लिए  माँ-बाप को ही जिम्मेदार मान लेते हैं जो मेरे हिसाब से उचित नहीं होगा,  जैसा की आपने उदहारण  दिया है की "तुझे सूरज कहूँ या चंदा ....तो प्रबल जी ये तो एक बाप की भावनाएं हैं, एक बाप की अपेक्षाएं हैं  अपने पुत्र से , इसमें क्या गलत है ? और क्या सही ? विचार अपने-अपने...लेकिन  बेटे को तो सुनिए क्या कहता है ....पापा कहतें हैं बढ़ा नाम करेगा ..... आगे क्या कहता है बेटा ? आप जानते हैं ? मुझे याद है अपनी   एक पोस्ट  मैं उलूक महोदय  ने कहा  है की " आदमी क्या चाहता है सिर्फ अपनी ही शर्तों पर जीना ......." सच आज यदि कोई बाप अपनी संतान को सिर्फ उसकी ही शर्तों पर  जीने से रोकता है तो कहा जाता है की यह तो जनरेशन गैप है.....हाँ मैं मानता हूँ की कहीं -कहीं पर माँ-बाप के सपने भी जरुरत से अधिक भारी हो  जाते हैं , लेकिन आपसी संवाद से  भी इस समस्या का  समाधान किया जा सकता है ,जिसके लिए हमें और  हमारे बच्चों को आगे आना होगा  .बच्चों को चाहिए की वो अपने माँ-बाप की भावनाओं को समझें  और माँ-बाप को भी चाहिए की वो अपने बच्चों को सिर्फ डाक्टर या इंजिनियर ही बनाने की ना सोचें बल्कि उन्हें एक अच्छा इंसान बनाने की सोचें तो बेहतर होगा.......बांकी अभी और कितने बच्चे आत्महत्या करेंगे ? इस बात की भविष्यवाणी तो मैडम संगीता पुरी जी  ही कर सकते हैं ,वैसे मैडम अंकों का यह खेल मेरी समझ से बाहर है, समझने का प्रयाश कर रहा हूँ ,
"हिसालू-काफल,"एवं  "घुगुती-बासूती" मेरे चिर-परिचित ये शब्द याद दिलाते  हैं उन हसीन वादियों की जहाँ मेरा बचपन बीता और जहाँ पर कभी  मैं स्वछंद बिचरण किया करता था अपने बेरोज़गारी के दिनों में ,.......बहुत दिन हुए मैं एक ब्लॉग में विजिट कर रहा था , शायद शंजोज नाम के कोई नेपाली बंधू जिसके  लेखक हैं, बहुत ही मनोरंजक ब्लॉग.....  मनोरंजन से भरपूर इसी ब्लॉग से एक शेर मैंने आप के लिए संजो कर रखा है मुलाहिजा फरमाएं......
इधर भी खुदा, उधर भी खुदा,
उपर भी खुदा, नीचे भी खुदा.
चारों तरफ खुदा ही खुदा,
जहाँ  नहीं खुदा, वहां कल खुदेगा .....
और अंत में  एक दिन देर से ही सही (लेट-लतीफी भी हम भारतीयों की एक अदा है )
 आप एवं अन्य  सभी ब्लोगर्स एवं पाठकों को होली की हार्दिक बधाई............



 

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