मंगलवार, 2 मार्च 2010

एक रत्न सचिन के लिए......

इधर एक दिवसीय क्रिकेट में सचिन का  दोहरा सतक पूरा भी नहीं हुवा था कि उधर से उनके समर्थकों एवं प्रशंषकों  ने मांग कर डाली कि सचिन को 'भारत रत्न ' दिया जाय .
तो जनाब आज सिर्फ मांग उठाई गई है  कल को जुलुस निकला जायेगा और परसों को हड़ताल , आगजनी और हिंसा  का दौर आरंभ हो  जायेगा ,एक मामूली सी चिंगारी को शोलों में तब्दील होने में समय ही कितना लगता है वो भी हिन्दुस्तान में ? जाहीर  है  इस आग में हर कोई अपने-अपने हाथ सेकने की कोशिश करेगा,   आरंभ  मैं  स्वयं कर चुका हूँ ,पोस्ट आपके सामने है...कुछ और आग भड़केगी,  कुछ राष्ट्रीय सम्पति का नुकसान होगा और उसके बाद सचिन को 'भारत-रत्न'  देने की घोषणा की जाएगी , अर्थात मांगने से पुरूस्कार भी मिल जाया करते हैं, वैसे भी हम भारतियों को मांगने की आदत जो पड़ गई है,
 तो जनाब प्रश्न यह उठता है  है की सचिन को 'भारत-रत्न' देने के लिए मांग क्यों उठाई गई है ? जबकि आज सचिन स्वयं भारत के ही नहीं अपितु विश्व के एक अनमोल रत्न बन चुके है.  आज सचिन क्रिकेट की दुनिया के बेताज बादशाह  है. भविष्य में भी सचिन की बादशाहत कायम रह पायेगी या नहीं? यह  एक अनुतरित  प्रश्न है,  कभी  सर डान ब्रेडमेन के बारे में भी यही कहा जाता था, उसके बाद सुनील गावस्कर को भी सुनील मनोहर रेकॉर्डर गावस्कर कहा गया,  और आज गावस्कर के सरे कीर्तिमान ध्वस्त हो चुके है , हो सकता है आने वाले समय में कोई सचिन से भी आगे निकल जाए कुछ भी संभव है.

यु तो क्रिकेट को भद्र जनों का खेल कहा गया है, लिहाजा उचित तो यही होता की हम सचिन के लिए किसी अच्छे (भद्र) पुरुस्कार की मांग करते , जैसे की ' सर ' की उपाधि या फिर 'नोबल' जैसा कोई अन्य पुरुस्कार, भारत- रत्न, भारत- भूषण जैसे स्वदेशी पुरुस्कार वैसे भी भद्र जनों को शोभा नहीं देते है, देखिये ना..  सर डान ब्रेडमेन को दुनिया के किसी भी कोने में 'सर 'कहा जाता है, और एक हम हैं की वैश्वीकरण   के इस दौर में भी हम सचिन पर  भारतीयता (भारत-रत्न) का ठप्पा लगाना चाहते है  अर्थात हमे डर है कही कोई सचिन को हम से छीन ना ले............. अरे ...... मुझे क्या ? सचिन तो मराठियों कि शान है उन्हें तो किसी मराठा- रत्न से नवाज़ा जाना चाहिए (समाचार पत्रों कि सुर्ख़ियों के आधार पर) वैसे जनाब भद्र जानो कि अदालत में हमारी एक और मांग लंबित पड़ी है कुछ याद आया?  कोई  बात नहीं, मैं याद दिलाता हू , हम बरसों से फरियाद कर रहे है कि हमारे बापू अर्थात महात्मा गाँधी जी को भी नोबल पुरुस्कार दिया  जाए,  मरणोंपरांत  ही सही , हमे लगता है हमारी मांग जायज है ,जब महज दो- ढाई साल के कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को नोबल पुरुस्कार से नवाज़ा जा सकता है तो फिर क्यों  जीवन भर सत्य , अहिंसा और शांति कि स्थापना करते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले  हमारे बापू जी इस पुरुस्कार के लिए  तरसते रहें? हमने भद्र जनों से आग्रह किया , हमने गाँधी जी के पक्ष में दलीले पेश किये .  हम गिडगिड़ाये , कही कही पर हमने ब्लैक मैलिंग का भी सहारा लिया और आज यदि हमारी जुबान बंद रखने हेतु गाँधी जी को यह पुरुस्कार दिया भी जाता है तो इस पुरुस्कार की  क्या  एहमियत रह जाती है?
 और  अंत में यही की अब यदि सचिन को भारत रत्न से नवाज़ा भी जायेगा तो यह एक 'भारत- रत्न 'ना होकर एक 'सिफारिशी- रत्न ' होगा , सच मानिये तो भारत में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में कोई ऐसा रत्न नहीं है जो सचिन की बराबरी कर सके, सिर्फ क्रिकेट की दुनिया में................... 







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