शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

मेरा मसीहा कोई नहीं ...................

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए ,
इस हिमालय  से कोई  गंगा निकलनी चाहिए.....
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सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
शर्त  लेकिन थी की ये सूरत बदलनी चाहिए........i
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मेरे सीने में नहीं तो, तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन , आग लगनी चाहिए i

जी हाँ !  दुष्यंत कुमार की उपरोक्त पंक्तियों ने इस देश की संसद की एक-एक ईट को हिलाकर रख दिया लेकिन संसद के भीतर बैठे हमारे रहनुमाओं के कान पर जूं  तक नहीं रेंगी , क्योंकि तुष्टिकरण  की नीति पूरे संसद पर हावी है , आज हर कोई अल्पसंख्यकों , पिछड़ी जातियों एवं दलितों का मसीहा बन बैठा है , या बनना चाहता है , रेवड़ी की भांति आरक्षण रूपी बैशाखियाँ बांटी जा रही हैं , आज आर्थिक, सामाजिक एवं शारीरिक रूप से सक्क्षम व्यक्ति भी इस बैसाखी के सहारे दौड़ता नजर आ रहा है और जिसे इस बैशाखी की सख्त आवश्यकता  है वह घुटनों  के बल रेंगने को विवश   है I
        .........मैं बात कर रहा हूँ समाज के उस वर्ग की जिसे तुष्टिकरण
की इस नीति के फलस्वरूप समाज के हाशिये पर धकेल दिया गया है , मैं बात कर रहा हूँ उस इन्सान की जिसके लिए कोई मजहब, कोई जाति या कोई सम्प्रदाय मायने नहीं रखता है , अर्जुन की भांति उसकी भी आंख टिकी रहती है महज एक रोटी के टुकड़े   पर, सरकारी दस्तावेज उसे  बहु संख्यक मानते हैं लेकिन उसके आगे- पीछे कोई नहीं है , उसका उच्चकुल में जन्म लेना    ही उसके लिए अभिशाप बन बैठा है , धर्म, जाति एवं सम्प्रदायिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण एवं तुष्टिकरण की राजनीती के फल स्वरूप जिस अभिशिप्त  एवम उपेक्षित वर्ग का शनै - शनै उदय हो रहा है शायद उससे हम सभी अनजान  बैठे हैं i
किसी के मुह से निवाला छिनना  या फिर किसी के हाथों से सहारे की लाठी ( बैशाखी ) छिनना मेरी नियति  में नहीं है लेकिन मैं "आरक्षण" शब्द का  का पुरजोर विरोध करता हूँ  , क्योंकि आज इस आरक्षण शब्द से धार्मिक , सम्प्रदायिक एवम जातिवाद की बू आने लगी है , मेरा मानना है की आज की तारीख में आरक्षण का जो स्वरूप तैयार  किया गया है उससे समाज में सुख, समृधि एवम खुशहाली नहीं वरन सम्प्रदायिकता एवम जातिवाद को ही बढावा  मिल रहा है लिहाजा इस आरक्षण शब्द को ही ख़त्म कर "पैकेज" के रूप में एक ऐसी नीति तैयार  की जाय जिसे सिर्फ और सिर्फ मानवीय आधार पर लागू किया  जाय और धर्म, सम्प्रदाय एवम जातिगत  भावनाओं से परे हर उस इन्सान को इस नीति के दायरे में लाया जाय जो वास्तव में इसके हक़दार हैं , अन्यथा  आने वाले वर्षों  में मैं नहीं तो कोई और लिखने को मजबूर होगा की ................
हर कोई मसीहा तेरा है, पर मेरा मसीहा कोई नहीं ,
वोटों की चिंता रात-रात, इस देश की संसद सोई नहीं .......... 







      

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
    मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!

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  2. Sach mein aarakshan hamare desh kee ek bahut badi bidambana hai.. hamesha se hi doglee baaten hoti rahti hai aur eska fayada we log uthate hain jo jod-tod mein mahir hote hain....
    Chintansheel aalekh ke liye aabhar

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  3. बुराँश/बुरुंश को जब गमले में लगा लें तो यह कला मुझे भी सिखाइए।
    आरक्षण पर कुछ कहने को अब मन नहीं करता। यह करो तो गलत, न करो तो गलत। यह केवल और केवल दलित व आदिवासियों के लिए हो सकता था। परन्तु अब यह वट वृक्ष की तरह फैलता जा रहा है।
    घुघूती बासूती

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  4. 'आज की तारीख में आरक्षण का जो स्वरूप तैयार किया गया है उससे समाज में सुख, समृधि एवम खुशहाली नहीं वरन सम्प्रदायिकता एवम जातिवाद को ही बढावा मिल रहा है'

    - इस सही विश्लेषण और साफगोई के लिए साधुवाद.

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    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !

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