शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

आजादी के बदले हुए मायने ..................


गुप्ता जी ! पिछले कई वर्षों से ब्लॉग लेखन करते आ रहे हैं, आम आदमी गुप्ता जी की इस ब्लोगिंग को महज मन की भड़ांस निकलने का एक माध्यम समझती हैं, जबकि गुप्ता  जी  का कहना  है की  "अपने लिए जीये तो क्या जिये, तू जी ऐ दिल ज़माने केलिए.....ऑरकुट-ट्विटर-अथवा फेसबुक  हो या फिर कोई अन्य सोशल साईट ?  कहीं पर भी गुप्ता जी की मौजूदगी तय है. मैं मानता हूँ की गुप्ता जी का शब्द सामर्थ्य बेहतरीन है, अचार-विचार और व्यहार में हर दिल अजीज होते हुए भी समाज की नजरों  में गुप्ता जी एक सनकी इंसान के अलावा और कुछ नहीं हैं, या फिर बातों-बातों में  अक्सर कुछ लोग उन्हें  एंग्री यंगमैन  का सम्मानित ख़िताब  दे दिया करते हैं, वहीँ दूसरी ओर   बिना किसी  मान-सामान की अपेक्षा और पाठकों की उपेक्षा की परवाह किये  पिछले कई वर्षों से गुप्ता जी के विचारों का   अंतर्जाल के माध्यम से निर्बाध रूप में  प्रसारण  हो रहा हैंजिसे गुप्ता जी देश एवं समाज हित में उनके द्वारा किये जा रहे प्रयासों में से एक महत्वपूर्ण प्रयास समझते हैं .
बहरहाल ! पिछले कुछ दिनों   से गुप्ता जी कुछ अधिक  ही आक्रामक दिखाई दे रहे हैं. कल अचानक मुलाकात हो गई.......कुछ खीझे हुए नजर आये...कुछ तेवर भी बदले हुए से थे, आंखिर यूँ ही नहीं नहीं मिला है गुप्ता जी को एंग्री यंगमैन  का खिताब...... 
"अरे गुप्ता जी आप ! कहिये कैसे हैं  ?
पूछिये मत ! हालात ठीक नहीं हैं...
क्यों क्या हुआ ? घर में कोई समस्या है या फिर सेहत ठीक नहीं है आपकी ?
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.......
तो फिर क्यों इतने उखड़े-उखड़े से हो ? बताओ न ! क्या बात है ?
"अखबार पढ़ते हो ?
"मैंने  कहा  नहीं......"
"टीवी  में खबरें देखते हो ?
"मैंने  कहा  नहीं ......."
"यार तुम कैसे जी रहे हो? क्या तुम्हें नहीं पता की देश कहाँ  जा रहा है ?"
"कमाल है गुप्ता जी ! आप भी कैसी बातें करते हो ? देश तरक्की  कर रहा है, देश विकास शील देशो की श्रेणी से निकल  विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने जा रहा है और आप हैं की पूछते हैं  देश कहा  जा रहा है ? " मैंने गुप्ता जी की  शंका का समाधान करना चाहा, किन्तु यह क्या? देश की तरक्की का बखान सुनते ही गुप्ता जी ने  रौद्र रूप अख्तियार कर लिया .......
"तुम्हें नहीं पता की अब  देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर भी अंकुश लगाने की साजिश हो रही है?" 
अब मैं समझा की आंखिर इन दिनों गुप्ता जी क्यों इतने आक्रोशित हैं, मैंने उनके आक्रोश को शांत करना अपना कर्तव्य समझा..........
"ठीक ही तो हैइसमें बुराई क्या है ? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  का मतलब यह तो नहीं की आप जब चाहे जैसे चाहें किसी की भी पगड़ी उछाल देआंखिर आपको किसने हक दिया है की आप किसी की भी निजी जिन्दगी में तांक-झांक  करें, अभिव्यक्ति कि अजादी के बहाने आप कैसे किसी के  मान-सामान पर प्रहार कर सकते हो? अब बताइए गुप्ता जी! इस आजादी में भी थोड़ी बहुत अंकुश की गुंजाईश है की नहीं ?
लगता है मेरी बातों का गुप्ता जी पर थोड़ी-बहुत असर  हुआ है  बोले 
"बात तो आपकी ठीक है , समाज में हर किसी की अपनी-अपनी हैसियत है, मान-मर्यादा का ध्यान तो रखा ही जाना चाहिए लेकिन .........."
मुझे समझते देर नहीं लगी की आज फिर गुप्ता जी ने कोई नया मुद्दा पकड़ लिया है , क्या हो सकता है गुप्ता जी का  नया मुद्दा ? यह जानने को मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी,
"लेकिन क्या ? बोलिए  ना......."अभिव्यक्ति की आजादी का भरपूर लाभ उठाने हेतु मैंने गुप्ता जी को उकसाया औरगुप्ता  जी ने वास्तव में मेरे द्वारा प्रदत इस  स्वंत्रता का जम कर उपयोग किया ,
 अब क्या था ? गुप्ता जी अपनी  एंग्री यंगमैन की छबि को सार्थक करते हुए हो गए  शुरू..........
"मैं मानता हूँ इस देश के लोकतंत्र में आम आदमी को क्या हासिल हुआ है ? एक अभिव्यक्ति की आजादी और दूसरा मताधिकार ........बताइए......आजादी के बाद और क्या हासिल हुआ  इस देश में आम नागरिक को?
अब देखिये ना! कुछ लोग अभिव्यक्ति की आजादी का दुरूपयोग करते हैं तो हमारे सिब्बल साहब कहते हैं की सरकार अंतर्जाल (सोशल साइटों) पर अंकुश लगा सकती है......अरे भाई सभी को एक ही लाठी से हांकने की सोचते हो ? यहं कहाँ का इन्साफ है.......?
 मुझे भी लगा "करे कोई और भरे कोई.......गुप्ता जी की बातों में  काफी वजन था........लेकिन अभी तो गुप्ता जी ने आरम्भ ही किया है.अंत तक तो इन्हें झेलना ही होगा..लिहाजा इस बखत मेरी हालत कसाई के आगे अपनी गर्दन समर्पित कर देने वाले किसी जानवर से कमतर नहीं थी....मैंने स्वयं शब्द रूपी खंजर गुप्ता जी के हाथों में दे दिया था.......आगे चलकर गुप्ता जी ने उस खंजर का कैसे-कैसे इस्तेमाल किया इसका वर्णन इस संक्षिप्त सी पोस्ट में संभव नहीं होगा, हाँ ! शब्द रूपी खंजर हाथ में आने के पश्चात गुप्ता जी ने मुझपर जो अत्याचार किये उनका संक्षिप्त सा सारांश यह है कि :-
"यह सही है कि प्रजातंत्र में अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता और व्यस्क  होने पर प्रत्येक भारतीय को मतदान का अधिकार भारतीय संबिधान द्वरा प्रदत्त अधिकारों में से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, और यही लोकतंत्र कि विशेषता भी है, लेकिन हमने कहाँ तक अपने मूल अधिकारों का सदुपयोग किया है,?
अभिव्यक्ति कि आजादी के नाम पर हम किसी कि धार्मिक भावनाओं को ठेंस पहुंचाते हैं, किसी कि निजी जिन्दगी में तांक-झाँक करना या फिर किसी के मान-सम्मान के विपरीत टिका-टिपण्णी करना, अथवा तकनिकी का बेजा इस्तेमाल क्या अभिव्यक्ति कि आजादी के खिलाफ नहीं है? व्यस्क  होने पर प्रत्येक भारतीय नागरिक को मतदान का अधिकार प्राप्त है, लेकिन क्या हम अपने इस अधिकार का भी सदुपयोग कर पाए हैं ? क्यों एक अपराधिक  एवं  शातिर किस्म का उम्मीदवार चुनाव  मैदान में बाजी मार लेता है ? क्योंकि हम अपने मतदान के अधिकार का दुरूपयोग करते हुए एक अपराधिक एवं शातिर किस्म का उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करते हैं. जाहिर है जब तक जनता संबिधान द्वारा प्राप्त अपने अधिकारों के महत्त्व को नहीं समझेगी तब तक हम जनतंत्र के महत्त्व को भी नहीं समझ पाएंगे......? 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय महोदय
    राज्य स्तर के उच्च सदन में स्थानीय निकायों तथा शिक्षकों के लिय निर्वाचन के माध्यम से पृथक-पृथक स्थान निर्धारित होते हैं। इस प्रकार प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षकों के लिये राज्य के उच्च सदन में अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजने की स्पष्ट व्यवस्था होने से वह राजनैतिक रूप से अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र होता है तथा यथा समय अपनी स्वतंत्र राय के आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनने हुये उसे विधान परिषद हेतु भेजता भी हैं परन्तु अन्य राज्य कर्मचारियों के पास निर्वाचन से संबंधित अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने का इस प्रकार का कोई प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं है। यह बात कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती ! ...

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  2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही शालीनता भी ज़रूरी है ..... बहुत कुछ कह गया आपका आलेख

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  3. बहुत ही शानदार एवं सटीक प्रस्तुति....शुभकामनायें

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  4. सिब्बल साहब उल्टा झंडा टांकते हैं तो काम भी उलटे ही करेंगे

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