"उफ्फ ! कितना ह्रदय विदारक दृश्य था वह ? गहन धुंध की चादर में लिपटी हुयी एक सर्द सुबह, अभी मुश्किल से ६ बजे होंगे, गली मुहल्ले के तमाम लोग अभी तक रजाई या गरम मखमली कम्बलों में दुबके पड़े थे.
" ऐ माई ! कोई फटा पुराना कपडा ...." माता रानी तेरा भला करेगी ... ....
" ऐ दीदी ! तेरे बचे सुखी रहे. .... एक कोली आटा,रुपया दो रुपया ....... गरीब पर दया करो.......
एक दीन-हीन किन्तु कर्कश स्वर एवं मासूम के करुण-क्रंदन नें मुझे विवश कर दिया था रजाई छोड़ने को. मै उनींदी आँखों से बालकनी के नीचे गली में झांकता हूँ, शायद भिखारिन ने मुझे देख लिया था.
"ऐ बाबू जी............
जी! मेरे बच्चे पर दया करो....... रुपय्या दो रुपय्या ... माता रानी तेरी कमाई को बरकत देगी.
हालाँकि उस भिखारिन की याचना और दुआओं की ओर मेरा तनिक भी ध्यान नहीं था, किन्तु उस की गोद में रोते बिलखते मासूम का करुण-क्रंदन मेरे अंतर मन को द्रवित कर गया.
मां (भिखारिन ) की गोद में फटे पुराने कपड़ों में लिपटा हुआ दो-तीन बर्षीय बच्चे को देख कर सहज अनुमान लगाया जा सकता था की कपकपाती ठण्ड को देखते हुए बच्चे को पूरी सुरक्षा प्रदान की गयी थी. बाबजूद इसके बच्चा रोये जा रहा था.
"हो सकता है बच्चे को भूख लगी हो?" यदि इसे कुछ खाने को दिया जाये तो सम्भब है शांत हो जाय ?
कदाचित मेरा अनुमान सही निकले? में अधिक विलम्ब न करते हुए रसोई में तलाश करता हूँ, शायद कुछ खाने को मिल जाये, लेकिन इतनी सुबह ......? अभी तो नाश्ता भी तैयार नहीं है...........
"बासी रोटी ..... नहीं ....... बच्चे को बासी रोटी देना उचित नहीं होगा. तो .......? हाँ ....... यही उचित रहेगा.
फ्रिज के उपर पड़ा हुआ बिस्किट का पैकेट नज़र आया.
"बच्चे को चुप कराने का इस से बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता है."
"ये लो ! पांच रूपये का सिक्का भिखारिन को थमाते हुए .........
बच्चे रोते नहीं, देखो में तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ.
बिस्किट देखते ही बच्चे का रोना बंद हुआ, अब वह मेरी ओर टकटकी लगाये देख रहा था, कदाचित वह मेरा आभार प्रकट कर रहा था. जिसे देख एकाएक किसी शायर की यह पंक्तियाँ स्मरण हो आयी " घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये.....
मैंने इत्मीनान की साँस ली. मुझे लगा दिन का शुभारम्भ एक नेक कार्य से हुआ है.
लेकिन यह क्या ? अभी मैं वापस बालकनी तक पहुँच भी नहीं पाया था की एकाएक पुन: वही करुण-क्रंदन."
अब क्या हो गया?
मैंने बालकनी से नीचे देखा...
"ओह नो !" यह क्या......... ?
भिखारिन उस मासूम के नन्हे हाथों से बिस्किट वापस छीन रही थी. बेशक बच्चा रोना नहीं चाहता था, तब भी उसे जबरन प्रताड़ित कर रोने-बिलखने को मजबूर किया जा रहा था.
एक मां और उसके मासूम का यह आपसी मामला था, लिहाजा अब मेरा हस्तक्षेप उचित नहीं होगा. अब मै विवश था. बच्चे को उसकी नियति पर छोड़ मैं अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया, शायद यही मेरे लिए हितकर भी था.
जी हाँ! उपरोक्त अंश एक सत्य घटना पर आधारित है. एक ऐसा सत्य जो हमें किसी भी गावं-शहर के गली- मुहले में अक्सर देखने सुनने को मिल जाता है. हाँ! इसके पात्र एवं पटकथा, स्थान एवं समय के अनुसार भिन्न हो सकते हैं.
अधेड़ उम्र की मां (भिखारन) कुछ साल और जियेगी. तब तक उसके आंचल की छाँव में रोता बिलखता-हँसता-खेलता मासूम भी तिरस्कार, कुपोषण, अशिक्षा एवं भुखमरी जैसी बाधाओं को झेलने योग्य जो जायेगा. इसके अतिरिक्त यदि किसी सार्वजानिक कूड़ेदान से कूड़ा बीनता हुआ या फिर किसी ढाबे में बर्तन मांजता हुआ कोई "छोटू" नज़र आ जाये तो समझ लीजिये एक मां के सपने साकार हुए I
" ऐ माई ! कोई फटा पुराना कपडा ...." माता रानी तेरा भला करेगी ... ....
" ऐ दीदी ! तेरे बचे सुखी रहे. .... एक कोली आटा,रुपया दो रुपया ....... गरीब पर दया करो.......
एक दीन-हीन किन्तु कर्कश स्वर एवं मासूम के करुण-क्रंदन नें मुझे विवश कर दिया था रजाई छोड़ने को. मै उनींदी आँखों से बालकनी के नीचे गली में झांकता हूँ, शायद भिखारिन ने मुझे देख लिया था.
"ऐ बाबू जी............
जी! मेरे बच्चे पर दया करो....... रुपय्या दो रुपय्या ... माता रानी तेरी कमाई को बरकत देगी.
हालाँकि उस भिखारिन की याचना और दुआओं की ओर मेरा तनिक भी ध्यान नहीं था, किन्तु उस की गोद में रोते बिलखते मासूम का करुण-क्रंदन मेरे अंतर मन को द्रवित कर गया.
मां (भिखारिन ) की गोद में फटे पुराने कपड़ों में लिपटा हुआ दो-तीन बर्षीय बच्चे को देख कर सहज अनुमान लगाया जा सकता था की कपकपाती ठण्ड को देखते हुए बच्चे को पूरी सुरक्षा प्रदान की गयी थी. बाबजूद इसके बच्चा रोये जा रहा था.
"हो सकता है बच्चे को भूख लगी हो?" यदि इसे कुछ खाने को दिया जाये तो सम्भब है शांत हो जाय ?
कदाचित मेरा अनुमान सही निकले? में अधिक विलम्ब न करते हुए रसोई में तलाश करता हूँ, शायद कुछ खाने को मिल जाये, लेकिन इतनी सुबह ......? अभी तो नाश्ता भी तैयार नहीं है...........
"बासी रोटी ..... नहीं ....... बच्चे को बासी रोटी देना उचित नहीं होगा. तो .......? हाँ ....... यही उचित रहेगा.
फ्रिज के उपर पड़ा हुआ बिस्किट का पैकेट नज़र आया.
"बच्चे को चुप कराने का इस से बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता है."
"ये लो ! पांच रूपये का सिक्का भिखारिन को थमाते हुए .........
बच्चे रोते नहीं, देखो में तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ.
बिस्किट देखते ही बच्चे का रोना बंद हुआ, अब वह मेरी ओर टकटकी लगाये देख रहा था, कदाचित वह मेरा आभार प्रकट कर रहा था. जिसे देख एकाएक किसी शायर की यह पंक्तियाँ स्मरण हो आयी " घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये.....
मैंने इत्मीनान की साँस ली. मुझे लगा दिन का शुभारम्भ एक नेक कार्य से हुआ है.
लेकिन यह क्या ? अभी मैं वापस बालकनी तक पहुँच भी नहीं पाया था की एकाएक पुन: वही करुण-क्रंदन."
अब क्या हो गया?
मैंने बालकनी से नीचे देखा...
"ओह नो !" यह क्या......... ?
भिखारिन उस मासूम के नन्हे हाथों से बिस्किट वापस छीन रही थी. बेशक बच्चा रोना नहीं चाहता था, तब भी उसे जबरन प्रताड़ित कर रोने-बिलखने को मजबूर किया जा रहा था.
एक मां और उसके मासूम का यह आपसी मामला था, लिहाजा अब मेरा हस्तक्षेप उचित नहीं होगा. अब मै विवश था. बच्चे को उसकी नियति पर छोड़ मैं अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया, शायद यही मेरे लिए हितकर भी था.
जी हाँ! उपरोक्त अंश एक सत्य घटना पर आधारित है. एक ऐसा सत्य जो हमें किसी भी गावं-शहर के गली- मुहले में अक्सर देखने सुनने को मिल जाता है. हाँ! इसके पात्र एवं पटकथा, स्थान एवं समय के अनुसार भिन्न हो सकते हैं.
अधेड़ उम्र की मां (भिखारन) कुछ साल और जियेगी. तब तक उसके आंचल की छाँव में रोता बिलखता-हँसता-खेलता मासूम भी तिरस्कार, कुपोषण, अशिक्षा एवं भुखमरी जैसी बाधाओं को झेलने योग्य जो जायेगा. इसके अतिरिक्त यदि किसी सार्वजानिक कूड़ेदान से कूड़ा बीनता हुआ या फिर किसी ढाबे में बर्तन मांजता हुआ कोई "छोटू" नज़र आ जाये तो समझ लीजिये एक मां के सपने साकार हुए I
kafi achchha prasang...
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक कहानी| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंयही हकीकत है भाकुनी जी. आज आप फुटपाथ, चौराहों व सड़कों पर अक्सर भिखारिनों को बच्चे गोद में लिए हुए भीख मांगते हुए देखते हैं. उनमे कुछ तो वास्तव में जरूरत मंद होती है किन्तु कुछ तो यह कि पति किसी और चौराहे पर या किसी और धंधे में, सास कहीं, बड़े बच्चे कहीं और .... ऐसे में इन्सान निष्टुर न हो तो क्या करे.
जवाब देंहटाएंहकीकत को उजागर करती इस पोस्ट के लिए आभार !!
मार्मिक है लेकिन सम्भावना यह भी है कि बच्चा उसका न होकर चुराया हुआ हो।
जवाब देंहटाएंमार्मिक लेख - -
जवाब देंहटाएंbahut samvedansheel prastuti ke liye aabhar!
जवाब देंहटाएं..ek marmik jiwant drashy ankhon ke aage kaundh gaya...
navvarsh kee spariwar aapko haardik shubhkamnayen..
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमार्मिल लेख!
बहुत सुंदर मार्मिक अभिव्यक्ति,बढ़िया प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंwelcome to new post--जिन्दगीं--
एक कडवी सच्चाई से रूबरू करवाती पोस्ट.....ऐसा अक्सर देखा जाता है........पहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ, achcha ब्लॉग है आप का.....फोलो का रही हूँ,उम्मीद है आना जाना लगा रहेगा .....
जवाब देंहटाएंadhik pane ka lalach jane kya kya karvata hai....bhavishya ki chinta vartman ka sukh bhi cheen leti hai
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक....
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