मैंने सुना है
मंदिर और मस्जिद को
आपस मे बतियाते हुए ,
मैंने देखि है
गिरिजाघर और गुरूद्वारे की
उन्मुक्त हंसी-ठिठोली ,
क्योंकि !
मेरा धर्म है मानव ,
मैंने ही निर्माण किया
मंदिर और मस्जिद का
मेरी ही उंगलिओं के निसान
गिरिजाघर और गुरूद्वारे की
एक-एक इट पर
अंकित हैं सदियों से
क्योंकि !
मेरा धर्म है मानव I
राम चरित मानस मै कहा गया है "बड़ो भाग मानुष तन पायो " अर्थात मनुष्य जीवन की प्राप्ति ही हमारे लिए सबसे बड़ी नेमत है, जन्म के समय मनुष्य का कोई धर्म नहीं होता है ,यह बात अलग है की हम उसके माँ-बाप से उसको जोड़ने का प्रयास करते है , क्योंकि उसके माँ-बाप कथित तौर पर किसी-न-किसी धर्म से जुड़े होते हैं , अर्थात जुड़े हैं , लकिन बिडम्बना देखिये ! माँ-बाप बच्चे को उस धर्म से जोड़ने का प्रयाश करते है जो आगे चलकर बच्चे को एक पहिचान अवश्य देता है किन्तु इंसानियत से दूर भी कर देता है I तो क्या धर्म इन्सान को इंसानियत से दूर कर देता है ? जी नहीं ! धर्म ही सच्चे मायने मै हमें इंसानियत का पाठ पढाता है वास्तव मै होता क्या है की हम सिर्फ धर्म का चोगा (लबादा) ओढ़ लेते है, सच्चे मन से किसी भी धर्म को अपनाकर देखो ! जन्नत बन जाएगी यह धरती .....एक हो जायेंगे मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे और गिरिजाघर....क्रमशः
किन्तु.... इंसानियत से दूर ले जाता है
जवाब देंहटाएंअच्छा लिख रहे हैं आप... ऐसे विचारों की समाज को जरूरत है।
bahut bahut dhanyavad aapka
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