सुखमय जीवन ,प्रदुषण रहित , शस्य श्यामला वसुंधरा
तुलसी का पावन एक पौंधा ,आंगन कर दे हरा-भरा
हरी-भरी हो धरती अपनी, महके घर- आंगन अपना
रंग- बिरंगे फूल खिले हों, कितना सुन्दर है सपना ?
सिकुड़ रहा है आज हिमाला ,पनघट भी अब नहीं रहे
गुम-sum झरने ,गायब नदियाँ, रोको इनको कौन कहे?
कुल्हाड़ी को रोकना होगा,पेड़ लगायें मिल-जुल कर
अभी समय है कुछ नहीं बिगड़ा, पछतायेंगे जीवन भर .
हरियाली जो वापस ला दे, ऐसा एक बबूल सही,
मै तो केवल याद दिलाऊ, पुरखों ने यह बात कही.
कल-कल नदियाँ, झर-झर झरने शीतलमंद बयार के झोंके,
मां सामान है धरती अपनी, आओ इसका दोहन रोकें .
सुख- समृधी और खुशहाली के, सूचक हैं वन हरे-भरे
इस आदर्श बुनियाद के उपर, पृथक राज्य निर्माण करें.
मां सामान है धरती अपनी, आओ इसका दोहन रोकें .
सुख- समृधी और खुशहाली के, सूचक हैं वन हरे-भरे
इस आदर्श बुनियाद के उपर, पृथक राज्य निर्माण करें.
हाथ बढाएं, साथ निभाएं, छूटे ना कोई हमसे
सपना जो हम सबने देखा, संभव है साकार करें ii
very nice....
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