मैंने देखा है भट्टे को बैठा हुआ
एक कहावत समझती है दुनिया जिसे ,
सांचे में ढल चुकी थी उसे तपना भी था
जब वो पक जाएगी ,खनखनायेगी वो
बनके दीवार तब गुनगुनायेगी वो
झूमकर मेघ बरसे वो सूखी न थी
घुल गई ईट पानी में कच्ची थी वो
मिल गया ढांचा मिटटी में कुछ ना बचा
मैंने देखा है भट्टे को बैठा हुआ ,
एक कहावत समझती है दुनिया जिसे ll
लहलहाती फसल यदि ऐन कटाई के समय बारिश की भेंट चढ़ जाय
तो हम कह देते हैं की किसान का तो भट्टा ही बैठ गया है , ठेकेदारी में यदि ठेकेदार को लाभ की जगह हानि उठानी पढ़े तो हम कह देते हैं की ठेकेदार का तो भट्टा ही बैठ गया है , भारी भरकम धन राशी खर्च करने के बावजूद भी यदि नेता जी चुनाव हार जाते हैं तो हम कह देते हैं की नेता जी का तो भट्टा ही बैठ गया है , छोटा दूकानदार हो या फिर कोई बड़ा व्यापारी ,किसी को भी यदि व्यापार में घाटा पढ़ जाय तो हम कह देते हैं की फलां व्यापारी का तो भट्टा ही बैठ गया है , और तो और साल के तीन सौ पैंसठ दिनों में यदि कोई ब्लोगर पचास पोस्टों का आंकड़ा भी पार न कर पाए तो कहा जा सकता हैं की फलां ब्लोगर का तो भट्टा ही बैठ गया है , दुर्भाग्य से मैं भी उन्ही फलां ब्लोगरों की श्रेणी में आ चुका हूँ l
"भट्टा बैठना" या "भट्टा बैठ जाना" ! जिसके मायने हैं नुकसान होना या फिर दुसरे शब्दों में कहें तो " सब किये कराये पर पानी फिर जाना " बचपन से ही उपरोक्त कहावत को सुनते आ रहे हैं बावजूद इसके कभी भी गंभीरता से यह जानने का प्रयास नहीं किया की क्या होता है भट्टा बैठ जाना ? आंखिर किन परिस्थितियों में इस कहावत की उत्पति होती है ? कभी भी इस कहावत की सच्चाई को बारीकी से जानने का प्रयास नहीं किया , बस आपने कहा " फलां व्यक्ति का तो भट्टा ही बैठ गया " और बातों ही बातों में हम समझ गए की " फलां व्यक्ति का नुकसान हो गया है " ....................
बहरहाल ! पिछला हफ्ता काफी व्यस्त रहा , इसी व्यस्तता के दौरान किसी ईट भट्टे को करीब से देखने और सुनने का अवसर मिला , सप्ताह के आरम्भ में हुई बारिश कीं वजह से ईट भट्टे पर ख़ामोशी छाई हुई थी , बावजूद इसके वहां पर कुछ पक्की ईटों की ढेरियाँ नजर आ रही थी, बारिश की वजह से ही जिसके खरीदार भी नदारद थे , वहां पर मौजूद "मुंशी " से भट्टे पर पसरी हुई ख़ामोशी के संदर्भ में जब चर्चा हुई तो वह अपने जज्बातों को रोक नहीं पाया ,
" क्या करें बाबू जी ? आप खुद ही देख लीजिये ! हमारा तो भट्टा ही बैठ गया है "
" क्या कहा मुंशी जी आपने ? आपका भट्टा बैठ गया और हम उसे देख सकते हैं ?"
यकीन मानिये ! मैं दंग रह गया था , क्या एक बैठे हुए भट्टे को मैं अपनी आँखों से देख सकता हूँ ?
" हाँ ! हाँ ! क्यों नहीं ! चलिए मेरे साथ ...................
मैं और मेरे साथी मुंशी के पीछे -पीछे चल पड़े एक बैठे हुए भट्टे को देखने हेतु , परिसर के दुसरे कोने में बहुत सारी कच्ची इटें सूखने हेतु पंक्तिबद्ध रखी हुई थी , किन्तु पिछली रात को हुई भारी बारिश में सांचे में ढली हुई ईटों की कच्ची आकृतियाँ बारिश के पानी में घुल चुकी थी , बस प्रमाण के तौर पर कुछेक हलकी सी आकृतियाँ ही नजर आ रही थी जिनकी ओर इशारा करते हुए मुंशी ने हमें बताया की " देखो ! इसे कहते हैं "भट्टा बैठना "
ओह ! "अब समझा , यही वह स्थान है जहां से उपरोक्त कहावत की उत्पति होती है"
"धन्यवाद मुंशी जी "
और हम अपने गंतव्य को वापस लौट आए एक नई पोस्ट के साथ , नव वर्ष की प्रथम पोस्ट जो सहायक सिद्ध होगी उस ब्लोगर्स के लिए जो पिछले साल के तीन सौ पैंसठ दिनों में मात्र पचास पोस्टों का भी आंकड़ा पार नहीं कर पाया अर्थात जिसका पिछले साल भट्टा बैठ गया था l
"भट्टा बैठना" पर आपकी जाँच-पड़ताल निहायत एक नया कदम है........ किन्तु साल भर में पचास पोस्ट न दे पाने का आपका दुःख समझ नहीं आ रहा है भाकुनी जी! रचना की संख्याओं पर क्यों जा रहे हो, देखना तो यह चाहिए कि आपके लेख कितने सार्थक व सन्देश परक हैं........... चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' की 'उसने कहा था' कहानी उन्हें साहित्याकाश में ले गयी थी, ..... मोहन राकेश अपने तीन उपन्यास, बावन कहानियों और तीन(?) नाटकों के बूते ही हिंदी साहित्य जगत के सितारे हैं. ........ और ऐसे दर्जनों उदहारण हैं, जो संख्या बल नहीं बल्कि गुणवत्ता के आधार पर लोकप्रिय हैं........ हिंदी सिनेमा के नायक आमिर खान को ही देख लीजिये. ......... बहरहाल!
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट के लिए आभार!
सुबीर रावत जी की राय से सहमत हूँ, संख्या पर नहीं गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए|
जवाब देंहटाएंपोस्ट अच्छी लगी धन्यवाद|
एक रोचक अंदाज़ में लिखी हुई बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाई।
behtreen peastuti
जवाब देंहटाएं....
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
bhakuni g suna aapne ginti par nahin gunwatta par dhyan de so aage se kewal ISI marka blogs hi likhe
जवाब देंहटाएंdhanyabaad