बुरांश" एक जंगली फूल.....इसके विशालकाय पेड़ को मैं गमले मै उगाने का प्रयास कर रहा हूँ , मै चाहता हूँ कि इसकी सुन्दरता और इसकी महक से कोई भी बंचित न रह जाय .......
गुरुवार, 20 जनवरी 2011
कुछ अनुत्तरित प्रश्न .....................................................
एक बार कोई पिता-पुत्र एक गधा खरीदकर ले जा रहे थे, तभी मार्ग में उन्होंने कुछ लोगों को कहते सुना -
अरे ! वह देखो कितने मूर्ख है दोनों व्यक्ति ? गधा के होते हुए भी दोनों पैदल जा रहे हैं ?
पिता-पुत्र दोनों को ही उन लोगों की बात समझ आ गई और दोनों गधे पर सवार हो चल पढ़े अपने गंतव्य को , अभी वे लोग कुछ ही दूरी तय कर पाए थे की तभी दो लोग आपस मे बाते करते हुए सुनाई दिए -
अरे ! देखो उन दोनों को ! कितने निर्दयी लोग है ? बेचारा गधा उन दोनों के बोझ तले इस कदर दबा है की मुस्किल से चल पा रहा है l
दोनों पिता-पुत्र को उन लोगों की बात उचित लगी और पिता गधे से नीचे उतर गया ,और अपने गंतव्य को चल पड़े , अभी वे कुछ ही कदम आगे बढे थे कि एक और व्यक्ति बोल पड़ा -
"क्या जमाना आगया है ? जवान बेटा गधे पर बैठा है और बूढ़ा बाप पैदल चल रहा है ",
"बात तो इस व्यक्ति भी उचित है ' पुत्र मन ही मन बुदबुदाया और गधे से नीचे उतर गया और पिता को गधे पर बैठा कर खुद पैदल चलने लगा l
अब क्या हो गया ? शायद कोई महिला स्वर सुनाई दिया -
अरे ! कैसा बाप है यह ? आप तो गधे की सवारी का आनंद ले रहा है और बच्चे को पैदल दौड़ा रहा है ? यह सुनकर दोनों पिता-पुत्र समझ नहीं पा रहे थे की अब क्या किया जाय कैसे उक्त सभी लोगो को एक साथ संतुष्ट किया जाय ?
अन्तत : एक उपाय सूझा और एक मजबूत लठ्ठे में गधे को लटका कर दोनों चल पढ़े अपने गाँव की ओर,
जैसे ही दोनों पिता पुत्र अपने गाँव पहुंचे उन्हें देख सभी गाँव वासी हंसने लगे और उन दोनों पिता पुत्र की इस मूर्खता का कारण पूछने लगे , जब दोनों पिता-पुत्र ने मार्ग में घटित सारा वृत्तांत गाँव वासियों को सुनाया तो गाँव वाले और भी जोर-जोर से हंसने लगे और तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति ने उन्हें बताया की यदि तुमने जरा भी अपने विवेक का उपयोग किया होता तो आज ये लोग तुम पर न हँसते , तुम चाहे लाख जतन कर लो एक साथ सभी को खुश नहीं किया सकता है l
जी हाँ ! उपरोक्त प्रेरक एवं शिक्षाप्रद कहानी पंचतन्त्र या शायद किसी बाल कहानियां नामक पत्रिका से साभार है ( स्मृति दोष हेतु क्षमा चाहूँगा )
कहानी को पढकर जहां एक बात यह समझ में आती है की एक साथ सभी को खुश नहीं किया जा सकता है वही दूसरी ओर उक्त कहानी से यह भी सीखने मिलता है की हमें दूसरों की बातों में न आकर अपने विवेक का सर्वप्रथम उपयोग करना चाहिए ,तद्पश्चात ही दूसरों से विचार विमर्श के बाद कोई निर्णय लेना चाहिए l
जो भी हो ! कहानी का गंभीरता से अध्यन करने और पूरी इमानदारी से इसका विश्लेषण करने पर मैंने पाया की इसी कहानी में कुछेक सवाल ऐसे भी छिपे हैं जिनका जवाब भी उक्त कहानी में ही निहित हैं जैसे की -
> पहले दो व्यक्तियों का कहना अपनी जगह पर सही है की -
"अरे ! वह देखो कितने मूर्ख है दोनों व्यक्ति ? गधा के होते हुए
भी दोनों पैदल जा रहे हैं ?
> दूसरा व्यक्ति भी अपनी जगह पर गलत नहीं दिखाई दिया -
"अरे ! देखो उन दोनों को !कितने निर्दयी लोग है ?बेचारा गधा उन दोनों के बोझ तले इस कदर दबा है की मुस्किल से चल पा रहा है l
> तीसरा व्यक्ति जो कह रहा था क्या वह अनुचित था ?
"क्या जमाना आगया है ? जवान बेटा गधे पर बैठा है और
बूढ़ा बाप पैदल चल रहा है "
> क्या उस महिला का कहना गलत होगा की -
"अरे ! कैसा बाप है यह ? आप तो गधे की सवारी का आनंद
ले रहा है और बच्चे को पैदल दौड़ा रहा है ?
बहरहाल ! कहानी से ही उपजे उल्लिखित प्रश्नों का उत्तर जो भी हो इतना तो अवश्य है की देश काल एवं परिस्थितियों के अनुकूल निर्णय लेने में ही समझदारी है और जो इस तथ्य को नकार जाते हैं वे समाज में हंसी के पात्र बन जाते हैं और अपनी जग हंसाई के लिए दूसरों पर दोषारोपण करने लगते हैं , इस संदर्भ में आपकी क्या राय है ? जानना चाहूँगा .........
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जवाब देंहटाएंएक साथ सभी को खुश करना नामुमकिन है । और जबरदस्ती इसकी कोशिश भी नहीं करनी चाहिए नहीं तो हम अपना स्वाभिमान और मौलिकता ही खो बैठते हैं।
उपरोक्त कथानक में जिन राहगीरों ने टिप्पणियाँ की पिता और पुत्र पर, वो सर्वथा अनुचित थीं , क्यूंकि हर व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार कार्य कर रहा होता है । इसलिए यदि कोई बदलाव चाहता है तो उसे तर्कों के साथ देना चाहिए।
इस प्रेरक प्रसंग के लिए आपका आभार।
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आप मेरे ब्लोग पर आये उसके तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ , बढ़िया और शिक्षा प्रद कहानि के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंकहानी के माध्यम से उठाये गए प्रश्नों का उत्तर आपने स्वयं ही दे दिया है भाकुनी जी. ............. नए विचारों के साथ एक अच्छी पोस्ट. वधाई.
जवाब देंहटाएंअपने विवेक से काम लेना चाहिए ...लोग दूसरों के दोष ही निकालते हैं
जवाब देंहटाएंबढ़िया और शिक्षा प्रद कहानि के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएं> संगीता स्वरुप ( गीत ) ji
जवाब देंहटाएंaap mere blogpe aye apni bahumuly pratikirya vyakt ki jiske liye main appka hardik abhaar vyakt karta hun .
अच्छी कहानी याद दिलाई, धन्यवाद।
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