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उस विद्रोही को
दिखाई न दिया
रात के स्याह अंधेरों में
सुकरात की तेजस्वी आँखें
बुझते दीये की मानिंद
टिमटिमा रही थी
शायद अभी-अभी उसने
विष का प्याला
अधरों से लगाया होगा ll
<><><><><><><><>
उस बिद्रोही को
दिखाई न दिया
गाँधी के पदचाप
विलीन हो रहे थे
गोलियों की गाडगडाहट में
हे राम ! यह क्या ?
यहाँ तो इंसानियत का
कत्ल हुआ है
कृपया इस बस्ती में कोई
रोशनी लेकर ना फिरें
और न ही
मानवता के गीत गुनगुनाए ll
उस विद्रोही को
दिखाई न दिया
रात के स्याह अंधेरों में
सुकरात की तेजस्वी आँखें
बुझते दीये की मानिंद
टिमटिमा रही थी
शायद अभी-अभी उसने
विष का प्याला
अधरों से लगाया होगा ll
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उस बिद्रोही को
दिखाई न दिया
गाँधी के पदचाप
विलीन हो रहे थे
गोलियों की गाडगडाहट में
हे राम ! यह क्या ?
यहाँ तो इंसानियत का
कत्ल हुआ है
कृपया इस बस्ती में कोई
रोशनी लेकर ना फिरें
और न ही
मानवता के गीत गुनगुनाए ll
हे राम ! यह क्या ?
जवाब देंहटाएंयहाँ तो इंसानियत का
कत्ल हुआ है
कृपया इस बस्ती में कोई
रोशनी लेकर ना फिरें
और न ही
मानवता के गीत गुनगुनाए
..बेहद संवेदनशील रचना ..
कब इंसान बनेगे ये इंसानियत के दुश्मन! यही सवाल बार कौंध उठता है जेहन में ....
बेहद संवेदनशील रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनशील रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंगांधी जी जैसे महापुरुष , युगों में एक बार जन्म लेते हैं । उनको मारकर इंसानियत का ही क़त्ल हुआ है। लेकिन उनके विचार हमारे मध्य रौशनी बनकर जीवित हैं और हमें अहिंसा और सन्मार्ग पर रहने का सन्देश दे रहे हैं।
जवाब देंहटाएं> shiva ji
जवाब देंहटाएंaap mere blog main aaye or apni pratikirya vyakt ki jis hetu main aapka abhaar vyakt krta hun,
..बेहद संवेदनशील रचना ..
जवाब देंहटाएंब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग की कई पोस्टें पढ़ीं। गधे वाली पोस्ट सबसे अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंहे राम ! यह क्या ?
जवाब देंहटाएंयहाँ तो इंसानियत का
कत्ल हुआ है
और यह क़त्ल आये दिन हो रहा है ..हर गली चोराहे पर ....क्या कहें
sochne p majbur kertihai aapki rachnaye ...........bahut prabhavshaali
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