सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

ये चाहे तो सर पै बिठा ले, चाहे फैंक दे नीचे...........


वर्ष 1981 में  मिस्र की जिस जनता ने हुश्नी  मुबारक   को सर आँखों पर बैठाया और राष्ट्रपति का ताज पहनकर सत्ता के शीर्ष पर पहुँचाया था तब किसी  ने भी नहीं सोचा  होगा की एक दिन वही जनता रास्त्रपति हुश्नी मुबारक को देश छोड़ने पर मजबूर कर देगी, सत्ता के शीर्ष पर विराजमान होते ही राष्ट्रपति हुश्नी मुबारक जनता के प्रति अपनी जवाबदेही को भूल गए और एक निरंकुश तानाशाह के रूप में सत्ता सुख  भोगते  रहे, अपने ३० वर्षों के लम्बे कार्यकाल में जहां एक ओर रास्त्रपति हुश्नी मुबारक ने  गलत तरीके से अरबों डालर  की सम्पति हासिल  की वहीँ दूसरी ओर  मिश्र की जनता बेरोजगारी, भुखमरी और गरीबी की गर्त में समाती चली गई, परिणाम स्वरूप जनता का आक्रोश और असंतोष दिनों-दिन बढ़ता चला गया, भोग विलास में लिप्त और निरंकुश राष्ट्रपति  जनता की शक्ति का समय पर मुल्यांकन नहीं कर पाए और यही एक भूल उनकी पतन का कारण बनी ,
जी हाँ ! मिश्र में पिछले दिनों जो कुछ हुआ  उसे पूरी दुनिया ने देखा और सुना, नोबेल शांति पुरूस्कार विजेता और प्रमुख असंतुष्ट नेता मोहमद अल बरदई के नेतृतव में जब लाखों की संख्या में लोग तहरीर स्क्वायर में एकत्र हुए तभी यह तय हो गया था की अब भरष्टाचार एवं  तानाशाही  को ख़त्म करने में  मिश्र की जनता को कोई नहीं रोक सकता है, हुआ भी यही , भरष्टाचार एवं तानाशाह का अंत हुआ और जनता ने जश्न के तौर पर पिछले तीस वर्षों में  पहली बार खुली हवा में  सांस ली, और इसी के साथ मिश्र में  एक नए युग की शुरुआत हुई  जैसा की तहरीर स्क्वायर में असंतुष्ट नेता मोहमद अल बरदई ने घोषणा की थी,
मिश्र मे लोकतंत्र का भविष्य क्या होगा और कैसा होगा ? यह  तय होना  अभी   बांकी है लेकिन भरष्टाचार एवं निरंकुश तानाशाही से जूझ रहे विश्व के तमाम देशो की जनता में  इस घटना के बाद  एक नई उर्जा  और सुगबुगाहट  पैदा हुई है इसमें कोई संदेह नहीं है,  एक बार फिर यह साबित हुआ है की राजा प्रजा से बढकर नहीं है, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए  मिश्र की जनता  ने जो उदाहरण प्रस्तुत किया है वाकई  अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है ,
बहरहाल ! राष्ट्रपति हुश्नी मुबारक जैसे लोगों को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए की   जिस जनता ने तुम्हें सर-आँखों पर बैठाया है, जिस जनता ने तुम्हें सत्ता के शीर्ष तक पहुँचाया है, उसकी  भी कुछ उम्मीदें है, उसके भी कुछ सपने हैं, उसकी   उम्मीदों और उसके सपनो का सम्मान करना मत भूलीयेगा  वरना - 
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किसी शायर ने क्या खूब कहा है -
ये रुतबा, ये  तख़्त-ओ-ताज, ये नशा-ऐ-दौलत ,
किरायेदार है सब, घर बदलते रहते हैं   l
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29 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद भाकुनी जी, हमारे ब्लॉग पर आने एवं बहुमूल्य, उत्साहवर्द्धक टिप्पणी के लिये
    हमने उसे प्रकाशित कर दिया है।


    कृपया देखिये-


    http://pathkesathi.blogspot.com/



    हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है।

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  2. भाकुनी जी,
    आपने बिल्कुल सही लिखा है मगर हमारे देश के नेता यह बात पता नहीं कब समझेंगे !
    सामयिक पोस्ट के लिए धन्यवाद !

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  3. प्रासंगिक प्रस्तुति..... यक़ीनन जनता की भावनाओं का मान करना इन्हें आना चाहिए.... वरना बदलाव तो तय है.....

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  4. जनता की भावनाओं से खेलने का येही अंजाम होता है|सामयिक पोस्ट के लिए धन्यवाद|

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  5. यदि जनता एक जुट हो जाए तो क्रांति ला देती है , और वही हुआ ।

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  6. भाकुनी जी,
    आपने बिल्कुल सही लिखा है जनता की भावनाओं का मान करना इन्हें आना चाहिए.

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  7. जनता की भावनाओं का सम्मान आवश्यक है

    अति होने पर ऐसी ही प्रलय होती है

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  8. जनता की भावनाओं का सम्मान आवश्यक है
    सामयिक पोस्ट के लिए धन्यवाद ....

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  9. bahut badiya prastuti.
    sabse badi kranti jankranti.. bus jaagne aur jagaane mein der jarur lagti hai...

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  10. बहुत सार्थक विचार ...आपका कहना सही है

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  11. > GirishMukul ji
    > Sunil Kumar ji
    > Mukesh Kumar Mishra ji
    > Manpreet Kaur ji
    Aap mere blog pe aaye or mera manobl badhaya iske liye aapka abhaar vyakt krta hun,

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  12. जनतंत्र का असली मतलब तो यही है-जो जनता चाहे। ताज्जुब यह है कि जो देश जनतंत्र होने का दम भरते हैं,वहां की जनता में यह जुनून नदारद लगता है।

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  13. Respt.कुमार राधारमण ji aap is blog pr aaye or apni bahumuly pratikirya vyakt ki jis hetu main dil se aapka abhaar vyakt krta hun, nischit hi mera manobl adhaya hai aapne, dhanyvaad .

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  14. बहुत बढ़िया ! ठीक कहा आपने ...शुभकामनायें !

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  15. उम्दा पोस्ट!
    देखें आगे क्या होता है। क्रांति के बाद का सच भी दुःखदायी पाया गया है। निरीह जनता एक तानाशाह को जान की बाजी लगाकर हटाती है मगर कुछ समय के पश्चात दूसरे कई लुटेरे देश पर शासन करने लगते हैं। काश ऐसा न हो।

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  16. तानाशाही का यही हश्र होता है |

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  17. बहुत सार्थक और सामयिक लेख ... शुक्रवार को आपकी पोस्ट चर्चामंच पर होगी...http://charchamanch.blogspot.com

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  18. डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिji
    ap mere blog pr aaye jis hetu main aapka abhaar vyakt krta hun,
    regard-
    P.Singh..............

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  19. > संगीता स्वरुप ( गीत )Ap mere blog pr aaye jis hetu main aapka abhaar vyakt krta hun,

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  20. प्रत्येक तानाशाह का देर सवेर यही हश्र होना है. जो दो-चार तानाशाह बचे हैं उनके लिए भी यह खतरे की घंटी है. जो भी जनता की भावनाओं के अनुरूप नहीं चलेगा उसका यही अंजाम तय है.
    सार्थक पोस्ट

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  21. करनी का प्रति फल तो भुगतना ही पड़ेगा, प्रजा सर्वोपरि है

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