मां मेहरबान हुई, भक्तों के भाग जगे,
मां के चरणों में आके,
जोत जगा के
शीश झुका के...........
मुश्किल आसान हुई, भक्तों के भाग जगे l
माँ मेहरबान हुई, भक्तों..............
ओ मैया री.........ओ मैया री...............
जी हाँ ! आँखें बंद कीजिये! ध्यान लगाइए! और गुनगुनाइए उपरोक्त पंक्तियों को, अब महसूस कीजिये की आप माँ के कितने करीब हैं ? यकीनन ! यदि आप एक महिला हैं तो आप स्वयं को सलमान खान के काफी करीब पाएंगे और यदि आप एक पुरुष हैं तो जाहिर है आप स्वयं को मलयिका के करीब पाएंगे, बेशक आप माँ के दरबार में खड़े हैं आपके ठीक सामने माता की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी है बावजूद इसके सलमान खान और मलयिका की तस्वीरे आपकी नजरो में भ्रम पैदा करने का प्रयास करती है, और आपकी एकाग्रता बार-बार भंग होती है,आप मानते हैं की आप माता की भेंट गुनगुना रहे हैं लेकिन आपको सुनाई देता है -
मुन्नी बदनाम हुई, डार्लिंग तेरे लिए,
मुन्नी के गाल गुलाबी
नैन शराबी
चाल नवाबी
मैं झंडू बाम हुई डार्लिंग तेरे लिए.............
मुन्नी रे ................ओ मुन्नी रे.............
जब आप माता की भेंट गुनगुना रहे थे तो फिर पार्श्व में आपको क्यों सुनाई दे रहा है उपरोक्त आइटम सौंग ? आपके ठीक सामने माता की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हैं. फिर भी आपको सलमान खान या फिर मलयिका की तस्वीरें क्यों दिखाई देती हैं ? जब तक आप इन प्रश्नों का जवाब स्वयं से पाने का प्रयास करते हैं तब तक आप मौज-मस्ती के नशे में चूर होकर माँ से बहुत दूर निकल चुके होते हैं, अर्थात माँ के करीब पहुँचने का आपका प्रयास व्यर्थ गया ?
विगत दो-तीन वर्ष पूर्व बालीवुड की एक मनोरंजक फिल्म " अथिति तुम कब जावोगे " प्रदर्शित हुई, जहाँ एक ओर बाजार में इस फिल्म ने अच्छी-खासी कमाई की वही दूसरी ओर इस फिल्म ने दर्शकों का भी भरपूर मनोरंजन किया, मनोरंजन से भरपूर इस फिल्म का एक दृश्य आपको भी याद होगा जब परेश रावल पर फिल्माई गई एक भेंट -
ज्योति जलायले मैया की जिया
तो मैया तेरे साथ है ,
दम दमा दम.........
ओ ये सफ़र है मझदार
मैया करेगी बेडा पार सबका ....
हो सबका ...
हो आके मैया रानी का आशीर्वाद लई ले
आजा मंदिर में माँ का प्रसाद लई ले ..........
आजा मंदिर में ............
वास्तव में यदि देखा जाय तो फिल्म "अतिथि तुम कब जावोगे" महज एक मनोरंजक फिल्म थी और अपने उदेश्य के अनुरूप इस फिल्म में उपरोक्त दृश्य ने भी दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया, शायद ही कोई ऐसा दर्शक होगा जो उपरोक्त दृश्य के दौरान श्रद्धा वश माँ के चरणों में नतमस्तक हुआ होगा, हाँ ! ठहाके हम सभी ने लगाये, जबकि आस्था एवं भक्ति वहां से नदारद थी,
बहारहाल !
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि लोकगीतों में धरती गाती है, पर्वत गाते हैं, नदियां गाती हैं, और फसलें गाती हैं। उत्सव, मेले और अन्य अवसरों पर मधुर कंठों में लोक समूह लोकगीत गाते हैं," सामाजिकता को जिंदा रखने के लिए लोकगीतों एवं लोकसंस्कृतियों का सहेजा जाना बहुत जरूरी है,
लेकिन आज के इस भौतिक युग में सब कुछ व्यवसायिक हो चुका है, यहाँ सहेजने की चिंता किसी को नहीं है बस क्षणिक मनोरंजन तक ही सब कुछ सिमट कर रह गया है, भिन्न जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के होते हुए भी जिस लोक संस्कृति और लोक साहित्य ने हमें सदियों से एक सूत्र में बांधे रखा है आज उसका जो स्वरूप सामने आ रहा है उसकी एक मिसाल है - कुमाउनी अलबम "सप्तरंगी स्वैण " जिसे आप इंद्रधनुषी सपने भी कह सकते हो, उसी अलबम से एक गीत -ल्हिबे अगिछा मकैं स्वेणुक गौं में, प्यारक छाओं में बिठैबे धरिया .........
क्योंकि कुमाउनी मेरी मातृ भाषा है, अपनी मातृ भाषा में जब हम कोई गीत सुनते हैं या कोई साहित्य पढ़ते हैं तो अपनी माँतृ भूमि की याद आ ही जाती है, लेकिन यहाँ पर मुझे न तो आपनी माँतृ भूमि की याद आई और न ही वहां के खेत-खलिहान, नदी-नाले और घर-गाँव.........हाँ ! मुझे याद आई तो बस वर्षों पहले राजश्री बैनर तले बनी एक पारिवारिक फिल्म " दुल्हन वही जो पिया मन भाये" का एक कर्णप्रिय गीत -
ले तो आये हमें सपनो की गाँव में, प्यार की छाँव में बिठाये रखना ..सजना .......सजना.......
शेष आपकी प्रतिकिर्याओं पर निर्भर..........आभार .
तो मैया तेरे साथ है ,
दम दमा दम.........
ओ ये सफ़र है मझदार
मैया करेगी बेडा पार सबका ....
हो सबका ...
हो आके मैया रानी का आशीर्वाद लई ले
आजा मंदिर में माँ का प्रसाद लई ले ..........
आजा मंदिर में ............
वास्तव में यदि देखा जाय तो फिल्म "अतिथि तुम कब जावोगे" महज एक मनोरंजक फिल्म थी और अपने उदेश्य के अनुरूप इस फिल्म में उपरोक्त दृश्य ने भी दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया, शायद ही कोई ऐसा दर्शक होगा जो उपरोक्त दृश्य के दौरान श्रद्धा वश माँ के चरणों में नतमस्तक हुआ होगा, हाँ ! ठहाके हम सभी ने लगाये, जबकि आस्था एवं भक्ति वहां से नदारद थी,
बहारहाल !
लेकिन आज के इस भौतिक युग में सब कुछ व्यवसायिक हो चुका है, यहाँ सहेजने की चिंता किसी को नहीं है बस क्षणिक मनोरंजन तक ही सब कुछ सिमट कर रह गया है, भिन्न जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के होते हुए भी जिस लोक संस्कृति और लोक साहित्य ने हमें सदियों से एक सूत्र में बांधे रखा है आज उसका जो स्वरूप सामने आ रहा है उसकी एक मिसाल है - कुमाउनी अलबम "सप्तरंगी स्वैण " जिसे आप इंद्रधनुषी सपने भी कह सकते हो, उसी अलबम से एक गीत -ल्हिबे अगिछा मकैं स्वेणुक गौं में, प्यारक छाओं में बिठैबे धरिया .........
क्योंकि कुमाउनी मेरी
ले तो आये हमें सपनो की गाँव में, प्यार की छाँव में बिठाये रखना ..सजना .......सजना.......
शेष आपकी प्रतिकिर्याओं पर निर्भर..........आभार .
यही सच्चाई है !
जवाब देंहटाएंसटीक लिखा है !
आभार !
बिलकुल सही लिखा है सुनील जी .....
जवाब देंहटाएंभक्ति के लिए शांत मन और माहौल की जरूरत होती है | भक्ति गीत भी पारंपरिक ही अच्छे लगते हैं |
सामाजिकता को जिंदा रखने के लिए लोकगीतों एवं लोकसंस्कृतियों का सहेजा जाना बहुत जरूरी है,
जवाब देंहटाएंsarthak vichar hai. badhai
सही लिखा है ...लोंग भगवान के सामने भी शायद यही सोचते हों ... कथाओं में तो देखा है लोंग कथा से ज्यादा सब्ज़ी के भाव की बात करते हैं ..
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
ये आप कहाँ उलझ गए भाकुनी जी. अब आपने तो सुना ही होगा कि "जाकी रही भावना जैसी, प्रभुमूरत देखि ....."
जवाब देंहटाएंअशोक कुमार शुक्ला जी प्रोत्साहन हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ,
जवाब देंहटाएंकुछ लोग तो कथा कीर्तन में जातें ही हैं पर -निंदा रस लेने .कई नानियाँ और चाचियाँ मैंने ऐसा करते देखीं हैं .मानसिक कुन्हासे का अच्छा चित्र उकेरा है आपने .
जवाब देंहटाएंआप ने सही लिखा है लोग कथा, भागवत सुनने को तो जाते हैं लेकिन उनका दिमाग कही और ही होता है|
जवाब देंहटाएंपी.एस.भाकुनी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
......बिलकुल सही लिखा है
गहरी बात कह दी आपने।
जो आपने देखा वही सच है परंतु जैसा कि कबीरदास ने कहा है:
जवाब देंहटाएंसुखिया सब संसार है खाये और सोये
दुखिया दास कबीर है जागे और रोये!
लोकगीतों की मधुरता तो आजकल के भोंडे गीतों से कहीं खो सी गयी है ! यदि पहले जैसे सुन्दर और संस्कारयुक्त गीत लिखे जायें तो बहुत कुछ खोया हुआ वापस मिल सकता है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख !
बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है आपने ! गहरे भाव को शानदार रूप से व्यक्त किया है जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा आलेख !
जवाब देंहटाएंलोकगीतों की जितनी समृद्ध परम्परा हमारे यहां रही है,शायद ही कहीं हो। मगर,अब कई भाषाओं के लोकगीत इतने भ्रष्ट हो चुके हैं कि अब सुने भी नहीं जाते।
जवाब देंहटाएंलोकसंस्कृति और लोकगीतों का यह विकृत रूप अफसोसजनक है.... आपने बहुत विचारणीय बात की है....
जवाब देंहटाएं@ The mechanix ? meri bhi samajh main nahi aa raha hai ki aapko kaise samjhaun ?
जवाब देंहटाएंbharhaal ! aap mere blog main aaye or apnni bahumuly pratikirya vyakt ki jis hetu main dil se aapka abhaar vyakt krta hun,
abhaar.........
Bahut badiya..
जवाब देंहटाएंnaya andanj bahut achha laga..
Umda prastuti ke liye aabhar!
सुन्दर अभिव्यक्ति धार्मिक रूप में !मै भी धार्मिक प्रबृति का हूँ ! बधाई !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंप्रिय बंधुवर पी.एस.भाकुनी जी
सादर अभिवादन !
आपने जो विषय उठाया है , मैं पूर्णतः सहमत हूं । फिल्मी गीतों की धुनों पर तथाकथित भजन जोड़ कर गाने का टुच्चापन मुझे कभी रास नहीं आया …
बल्कि मैं तो किसी लोकधुन पर जोड़-तोड़ करके भक्तिगीत बना कर प्रस्तुत करने को भी मूल गीत के साथ बलात्कार ही मानता हूं ।
मैं वह गायक कवि हूं , जो अपनी रचनाएं भी स्वनिर्मित धुनों में गाने के लिए जाना जाता हूं । मेरी आस्था और मेरा विश्वास क्षणिक की अपेक्षा शाश्वत् होने में और मौलिक होने में है …
ब्लॉगिंग में 15-17 माह से ही हूं … शायद आपके यहां पहली बार आया हूं … आ'कर अच्छा लगा ।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
फ्रेंडशिप डे की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंपी. एस. भाकुनि जी !
इन जैसे मुददों पर विचार करने के लिए
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आपका स्वागत है।
http://www.hbfint.blogspot.com/
bahut khoobsoorat prastuti
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bahut khoob... lambe samay se aapka koi lekh padhne ko nahi mila hai... asha hai jald hi padne ko milega
जवाब देंहटाएंइन सब भांडों के होते हुए माँ के मंदिर में जाने का मन ही नहीं करता अब.....
जवाब देंहटाएंआभार एक बेहतरीन लेख के लिए !
baat to bahut hi durust kahi hai..sabke saath aisha hua hai....dhyaan lagna aassaan bhi to nahi hai dost..
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार "सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया"की तरफ से भारत के सबसे बड़े गौरक्षक भगवान श्री कृष्ण के जनमाष्टमी के पावन अवसर पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें लेकिन इसके साथ ही आज प्रण करें कि गौ माता की रक्षा करेएंगे और गौ माता की ह्त्या का विरोध करेएंगे!
जवाब देंहटाएंमेरा उदेसीय सिर्फ इतना है की
गौ माता की ह्त्या बंद हो और कुछ नहीं !
आपके सहयोग एवं स्नेह का सदैव आभरी हूँ
आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
सबकी मनोकामना पूर्ण हो .. जन्माष्टमी की आपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें
जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंV. NICE I LIKED IT
जवाब देंहटाएंसुनील जी ...बहुत ही चिंतनीय प्रश्न ...भक्ति भाव एकाग्रता से ही उत्पन्न होता है ..आपके आलेख ने मुझे सुन्दर खेतों खलिहानो में प्रकृति की सुरभ्य सानिध्य में पहुंचा दिया....शुभ कामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..आज के आधुनिक भक्तजनो के बारे में सही और सटीक बात उठाई है भक्ति गीत[ भजन]और लोक गीतो की मधुरता तो आजकल के भोंडे गीतों से कहीं खो सी गयी है ! विचारणीय लेख....
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंCorrect hai Boss!
Ashish