जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती है बसेरा ,
वो भारत देश है मेरा .......................
जी हाँ ! अतीत में भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था बल्कि मैं तो यही कहूँगा की भारत आज भी सोने की चिड़ियाँ है और भविष्य में भी भारत को सोने की चिड़ियाँ ही कहा जायेगा इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए , किन्तु अफ़सोस ! की आज वह सोने की चिड़ियाँ मंदिरों के तहखानो या फिर बाबाओं और राज नेताओं की तिजोरियों में कैद होकर रह गई है, कल्पना कीजिये ! यदि विदेशी बेंकों में जमा बेहिसाब काला धन और अपने देश के मंदिरों के तहखानो और बाबाओं की तिजोरियों में कैद तमाम सम्पतियों का राष्ट्र हित में सदुपयोग किया जाय तो क्या तब भी हमें अपनी संप्रभुता और अपना मान-सम्मान गिरवी रख कर विदेशी बेंकों और तथाकथित विकसित देशों की साम्राज्यवादी नीतियों के आगे घुटने टेकने होंगे ?
बहरहाल ! मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में मेरी पूर्ण आस्था है, और मैं सभी धार्मिक गुरुओं और बाबाओं का सच्चे दिल दे सम्मान करता हूँ लेकिन मुझे लगता है जहाँ पर सोने चांदी और कागज के चंद टुकड़ों को मानवीय भावनाओं और आस्था से बढकर महत्त्व दिया जाता है वहां पर कही-न- कही कुछ-न-कुछ तो सही नहीं है ?
आपका क्या ख्याल है जानना चाहूँगा ...........?
देश हित में आपकी यह सोच सही प्रतीत होती है ..लेकिन इन बाबाओं के पास जो धन आता है वह भी तो हमारी जेब से जाता है ..एक बाबा को हम लाखों रुपयों का चढ़ावा चढ़ा देते हैं ..लेकिन एक गरीब को हम ठुकरा देते हैं ....यह भी क्या विरोधाभास है ?.... !
जवाब देंहटाएंतहखाने में पड़े खजाने का कोई औचित्य नहीं ... और न ही कालाधन स्विस बैंक में जमा करने में ... यदि यह धन देश के काम आ सके और देश के विकास को तीव्र गति दे सके उससे बेहतर बात और क्या हो सकती है ..पर धान के लोभी कहाँ करेंगे ऐसा ...
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 07-07- 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएंनयी पुरानी हल चल में आज- प्रतीक्षारत नयनो में आशा अथाह है -
देश तो बड़ी बात है तह खानों, और विदेशी बैंको का धन स्वयम उसी व्यक्ति के काम नहीं आता है जो इकठ्ठा करता है , जैसे अभी सत्य साईं मंदिर में करोड़ो मिले बाबा तो खाली हाथ ही गए . पद्मनाभ मंदिर की भी यही दशा है सुना था जब संजय गाँधी की मृत्यु हुई थी तब इंदिरा गाँधी ने सबसे पहले संजय की घडी खोजी थी और घडी चाबी का किस्सा काफी दिनों तक चर्चित रहा .
जवाब देंहटाएंकाला धन आज पूरे देश में बर्निंग टॉपिक है. और काला धन बाहर निकालना पूरे देश की समस्या. काला धन नेताओं व बाबाओं के पास तो है ही पर नौकरशाहों के पास भी कम नहीं है. जिनके पास शक्ति सामर्थ्य है वही नहीं चाहेंगे. ....... काश ! कलयुग में भी भगवान अवतार ले और....... काला धन संग्रहकर्ताओं को बंदी बनाकर उनकी सारी सम्पति राष्ट्र को अर्पित करें. आमीन !
जवाब देंहटाएंसही और विचारणीय बात .....तभी कहा गया है ना की भारतीय गरीब हैं पर भारत देश गरीब नहीं है.....और यह उन्होंने ही कहा है जहाँ इस देश काला धन पड़ा है.....
जवाब देंहटाएंआस्था के नाम पर ढकोसला है यह सब.................. ढोंगी लोगों की कोई कमी नहीं है .... इतना अकूत धन किस काम का यदि वह देश के काम ही न आये... अब उसकी चौकीदारी भी सरकारी आदमी करें सो खर्चा अलग ..मतलब एक और मुसीबत... भाई जी बढ़िया लिखते हो आप लिखते रहना.. ऐसे लोगो की पोल खोलते रहना..
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रासंगिक एवं विचारणीय प्रश्न ...कला धन राष्ट्रहित में ..असहाय लाचारों के लिए ...कुल मिलाकर राष्ट्र की प्रग्रती में प्रयुक्त होना एक अत्यंत ही सुखद अहसास है....पर भ्रष्ट तंत्र में इसमें भी बन्दर बाँट की आशंका है...
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही सार्थक लेख शुभकामनाएं...सादर !!!
कला धन जमा करने वाले भी उस काले धन का इश्तेमॉल अपनी जिन्दगी में नहीं कर सकते हैं| खली हाथ आये थे खली हाथ ही चले जाते हैं फिर ऐसा धन जमा करने का क्या फायदा| बाबा लोग जिन के आगे पीछे कोई नहीं है वे भी इस बात को नहीं समझ रहे हैं| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंजहाँ पर सोने चांदी और कागज के चंद टुकड़ों को मानवीय भावनाओं और आस्था से बढकर महत्त्व दिया जाता है वहां पर कही-न- कही कुछ-न-कुछ तो सही नहीं है ?
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर जी,बधाई स्वीकार करें ।
मार्कण्ड दवे।
सही और विचारणीय बात ..
जवाब देंहटाएंकरीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
Ham logon ne to en baabaon ko badhwa diya hai.... Na jaane kab jaagruk honge ham....
जवाब देंहटाएंbadiya prastuti ke liye aabhar!
बिल्कुल सही कहा है आपने,
जवाब देंहटाएंआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
धर्मस्थलों के न्यासों को स्वयं सार्वजनिक हित में,ऐसे धन के इस्तेमाल की अनुमति के लिए आगे आना चाहिए। पर ऐसी पहल कहीं से होती प्रतीत नहीं होती।
जवाब देंहटाएंसोचिये की ये सारे पैसे मंदिरों मस्जिदों विदेशी बैंको बाबाओ की तिजोरी में गये ही नहीं होते तो देश का विकाश आज कहा का कहा होता
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने,
जवाब देंहटाएंhttp://fresh-cartoons.blogspot.com
ashok shukla
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
बेंकों में जमा बेहिसाब काला धन और अपने देश के मंदिरों के तहखानो और बाबाओं की तिजोरियों में कैद तमाम सम्पतियों का राष्ट्र हित में सदुपयोग किया जाय तो क्या तब भी हमें अपनी संप्रभुता और अपना मान-सम्मान गिरवी रख कर विदेशी बेंकों और तथाकथित विकसित देशों की साम्राज्यवादी नीतियों के आगे घुटने टेकने होंगे ?
जवाब देंहटाएंVery valid question . I agree with you.
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टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंआपसे सहमत हूँ . धन चाहे जैसा हो बस कुंडली मार दबाना ही हमारे देश की पहचान हो गयी है.. देश रसातल में जाये तो अपनी बला से. सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने,हमारी सोने की चिड़ियाँ तो मंदिरों के तहखानो या फिर बाबाओं और राज नेताओं की तिजोरियों में कैद होकर रह गई है, सार्थक लेख...
जवाब देंहटाएंभैया अपनी तो यही राय है ...........पैसा कहीं भी हो उसका उपयोग देश और आम जनता के हित में किया जाए किन्तु सतर्क निगरानी में | अब यह धन मंदिर में नहीं होता तो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों की तिजोरियों में जाता , जैसा कि इस समय विकास के नाम पर हो रहा है | अतः सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था और निगरानी जरूरी है |
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
जवाब देंहटाएंhttp://seawave-babli.blogspot.com
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मंदिरों के भीतर पैसे का होना रास्त्र हित में ही है , पर सविश बैंक में चोरी - छिपे रखना कितना उचित है ? ये तो सभी देश द्रोही निकालें !
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