सोमवार, 28 नवंबर 2011

वालमार्ट का भारत में आगमन.............



 गरीबी रेखा को यदि हम विश्व बैंक के मापदंडो के अनुसार तय करें तो हमारे देश  की लगभग 80  प्रतिशत जनता गरीबी रेखा के नीचे आती है.जिस देश की 80  फीसदी जनता गरीबी रेखा से निचे जीवन-यापन कर रही हो भला उस देश को कैसे विकसशील देशों की श्रेणी में रखा जा सकता है?  
पिछले दिनों बिहार की एक हकीकत  खबर बनकर सामने आई की एक जोड़ी बैल के अभाव में एक 9 सद्षीय परिवार जीवन-यापन हेतु बैल की जगह हल खीचने को मजबूर है, जिस देश में कोई परिवार एक जोड़ी बैल तक खरीदने में असमर्थ हो भला उस देश को कैसे आप विकाश शील देशों की श्रेणी में रख सकते हो ? 
जमीनी हकीकत को नजरंदाज करते हुए हमारे हुक्मरानों ने देश की जनता को आंकड़ों के भ्रमजाल में फांसकर  जो सप्तरंगी सपने दिखाए हैं  उन सपनो को पूरा करने के प्रयास हमारे हुक्मरानों द्वारा समय-समय पर किये जाते रहे हैं उन्हीं में से एक प्रयास है  विदेशी (अमेरिकन ) खुदरा व्यापार को भारत में मंजूरी ! वालमार्ट ! अर्थात एक अमेरिकन खुदरा व्यापारी अब भारत में अपनी किराने की दुकान खोलने की तैयारी में है , फ़िलहाल 10  लाख   से अधिक जनसंख्या वाले शहरों  में यह अपनी दुकान खोलेगा, और धीरे-धीरे या तो 10 लाख  से कम जनसंख्या  वाले शहरों की जनसंख्या बढ़ेगी या फिर छोटे -छोटे शहरों में भी इन्हें अपनी दुकान खोलने की मंजूरी दी जाएगी, क्योंकि बाजारवादी अर्थव्यस्था के समर्थक हमारे प्रधान मंत्री और उनके कई मंत्री भारत में वालमार्ट के आगमन को किसानो एवं उपभोक्ताओं के हितों से जोडकर देख रहे हैं,स्वयं वाल मार्ट अपनी सफाई में कहता है " हम किसानो से  उत्पाद खरीदकर बिना किसी बिचौलिए के सीधे अपने ग्राहकों तक पहुंचाते है, रोजगार के क्षेत्र  में भी हम आने वाले वर्षों में लाखों रोजगार पैदा करेंगे ! 
बहरहाल ! वर्ष 1962 में स्थापित  60 अलग-अलग नामो से विश्व के 28  देशों में  अपने 2 .1 Million  कर्मचारियों के सहयोग से लगभग 9826 खुदरा भंडारों के माध्यमों से पिछले साल $405 Billion  का कारोबार करने वाली वालमार्ट का भारत में आगमन लगभग तय है l 


6 टिप्‍पणियां:

  1. पूरी हकीकत को वयां कर दिया अपने इस पोस्ट के माध्यम से ....! अफ़सोस के सिवा और क्या कहा जा सकता है .....!

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  2. सामयिक और सार्थक प्रस्तुति, आभार.


    कृपया मेरे ब्लॉग प् भी पधारने का कष्ट करें.

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  3. सुनील जी
    आपने बहुत विचारणीय बात की है....

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  4. समय ही बताएगा रोजगार के अवसर बढेंगें या लोगों की रोज़ी छिन जाएगी ...... उम्दा विश्लेषण

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  5. ऐसा है तो यह दुखदायी है..... भारतीय और भी गरीबी में जियेगा और मोटे होंगे कुछेक लोग ही. ईश्वर ही कुछ कर सकता है.

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  6. इसके दुष्परिणाम का अभी अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल है !
    सामयिक और सार्थक विवेचना !

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