सुदूर पश्चिमी क्षितिज में सूर्यास्त देखते ही बनता है, आकाश में उड़ता हुआ पक्षियों का समूह दिन ढलने से पूर्व ही अपने गंतव्य तक पहुंचना चाहता है, अक्सर शांत स्वाभाव के इस महासागर को उग्र होता देख मछुवारों ने भी अपनी-अपनी किशितियों का रुख तट की ओर मोड़ दिया है, आकाश को छू लेने की होड़ में लहरों का शोर किसी अनहोनी की ओर संकेत कर रही हैं, शायद यही वजह रही होगी की तट पर चहल कदमी करते हुए सैलानियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है, लेकिन इन सबसे बेखबर विक्रम की पथराई हुई आँखें रोज की भांति आज भी तलास रही हैं उस एकांकी सितारे को जो असंख्य तारों के बीच में होते हुए भी नितांत अकेला है, अनन्त ब्रह्माण्ड में चमकते हुए कोटि नक्षत्रों के बीच टिमटिमाती हुई रोशनी बिखेरता हुआ अपनी पहिचान बनाये रखने की उसकी जद्दो-जहद, कदाचित ब्रह्माण्ड का यह सितारा विक्रम का ही एक प्रतिरूप है.
महज दो-तीन वर्ष की आयु में पिता की छत्रछाया से बंचित होना पढ़ा था, ममता की शीतल छांव तले अभी बचपन ठीक से करवट भी नहीं ले पाया था की नियति ने एक दिन अचानक ममता रूपी वह शीतल छावं भी उससे छीन ली, अब जीवन उसके लिए एक तपते हुए रेगिस्तान में परिवर्तित हो चुका था, किन्तु किसी छायादार बृक्ष की घनी छावं न सही, तपते हुए रेगिस्तान में बबूल के सामान दूर की रिश्तेदारी में उसका पालन-पोषण होने लगा, बचपन की उबड-खाबड़ पगडंडियों को लांघते हुए युवावस्था की दहलीज में कदम रखते ही एक बार पुन: जीवन-यात्रा में अवरोधों का सिलसिला आरम्भ हो गया था, विक्रम भली-भांति जनता था की अब उसे अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी......वाल्यावस्था की विषम परिस्तिथियों के लिए भले ही वह अपने भाग्य पर दोषारोपण करता हो लेकिन अब उसे स्वयं अपना भाग्य विधाता बनकर भविष्य की बुनियाद रखनी होगी.
जीवन यापन हेतु एक अदद नौकरी की तलाश में रोजगार सम्बन्धी विज्ञापनों को देखते-देखते अचानक एक विज्ञापन में उसकी नजरें थम गई, समाचार पत्र में छपा वह विज्ञापन कोई नौकरी से या फिर किसी रोजगार से सम्बंधित नहीं था बल्कि क्षेत्रीय विश्वविद्यालय में वार्षिक दीक्षांत समारोह के अवसर पर होने वाली काव्य गोष्टी के सम्बन्ध में था, जिसमें खुले तौर पर क्षेत्र के उभरते हुए युवा साहित्यकारों को सादर आमंत्रित किया गया था, समाचार पत्र में छपा वह विज्ञापन विक्रम के लिए मात्र एक विज्ञप्ति नहीं थी अपितु उसकी मंजिल की ओर बढ़ने वाली प्रथम सीढ़ी थी, यूँ तो अब तक कई क्षेत्रीय एवं राज्य स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में विक्रम की कई छोटी-बड़ी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी थी, लेकिन किसी सार्वजनिक मंच से काव्य-पाठ करते हुए उसे आज तक किसी ने नहीं देखा था, लिहाजा इस अवसर को वह खोना नहीं चाहता था.
विज्ञप्ति में उल्लिखित नियम एवं शतों के मुताबिक आवेदक को अपना संक्षिप्त परिचय एवं दो-तीन चुनिन्दा रचनाएँ केवल पंजीकृत डांक से ही भेजने थे, अत: बिना बिलम्ब किये दो-तीन चुनिन्दा रचनाएँ और साथ में अपना परिचय एक लिफापे में बंद कर वह निकल पड़ा पोस्ट ऑफिस की ओर. लिफापा एवं पंजीकरण शुल्क डांक बाबू को थमाते हुए -
"बाबू जी एक रजिस्ट्री करनी है, कितने दिनों में पहुँच जाएगी "?
'बस ! एक-दो दिन लगेंगे ".........
हूँ ....... अभी तो पर्याप्त समय है, आज से ठीक सात दिनों के बाद दीक्षांत समारोह का आयोजन होगा, तब तक तो वहां से प्राप्ति की सुचना भी मिल जाएगी. विक्रम पूर्णत: आश्वस्त था की चयन समिति उसकी रचनाओं को नजर अंदाज नहीं कर सकती है, क्योंकि उसने अपनी लेखनी और अपने शब्द सामर्थ्य की बेहतरीन प्रस्तुति चयन समिति के पास भेज दिए थे,
कदाचित उसका आत्म विश्वास गलत नहीं था, काव्य गोष्टी में भाग लेने हेतु उसका चयन कर लिया गया था, बस दो दिन और शेष है, दिल की धड़कने बढती जा रही थी, कितने रोमांचित कर देने वाले होंगे वे क्षण जब किसी सार्वजनिक मंच में प्रथम बार काव्यपाठ हेतु उसे आमंत्रित किया जायेगा.......?
सिर्फ सात दिनों की अवधि भी कम नहीं होती है यदि ये सात दिन सिर्फ इन्तेजार में गुजारने पढ़े तो.....इस बात को विक्रम ही भली-भांति समझ सकता था, लेकिन आज वह दिन भी आ ही गया जिसका उसे बेसब्री से इन्तेजार था .......
स्थान ! विश्वविद्यालय का विशाल शाभागार, क्षेत्र के तमाम बुद्धिजीवी, साहित्यकार एवं गणमान्य व्यक्तियों के अतिरिक्त भारी संख्या में आये हुए साहित्य प्रेमियों से खचाखच भर चुका था, संक्षिप्त साहित्य चर्चा के बाद आरम्भ हुआ काव्यपाठ का महत्वपूर्ण दौर........एक-दो प्रतिभागियों के पश्चात विक्रम को मंच पर जाकर काव्य-पाठ करना था.........
.........पैगाम-ऐ-मुहब्बत यूँ आते हैं रोज अब भी ,
तादात दुश्मनों की बढती ही जा रही है......
वाह ........वाह.......बहुत खूब.....बहुत खूब......पुन:.....एक बार फिर से.........तालियों की गड़गड़ाहट अब भी उसके कानों में गूंज रही हैं, उसे भली-भांति याद है आज से बीस साल पहले जब विश्वविद्यालय के विशाल सभागार में उसने पहली बार कविता पाठ किया था, कितने रोमांचित कर देने वाले थे वे क्षण ? विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय ने स्वयं जिस गर्मजोशी से " साहित्य के क्षेत्र में एक उभरता हुआ हस्ताक्षर के रूप में उसका परिचय श्रोताओं से कराया था, निसंदेह ! आज भी भुलाये नहीं जाते हैं वे पल..............
विक्रम अभी अतीत की उन अविस्मर्णीय पलों की भूल-भुलैया से बहार निकलने का प्रयास कर ही रहा था की एकाएक सागर की एक ऊँची लहर ने उसकी तन्द्रा को भंग कर दिया...
ओह ! उसने कलाई में नजर डाली , साम के आठ बज चुके थे, क्षितिज में सूरज का कहीं नामो निसान नहीं था, सुदूर ब्रहमांड में टीमटिमाता हुआ उसका चिर-परिचित सितारा आज फिर उसे ईशारा कर रहा था..........
बहुत देर हो चुकी है , घर नहीं जाना क्या........?
बहुत दिनों बाद दर्शन दिए सितारे ने - वही अपने चिर परिचित जादुई 'आभास' के साथ - वाह !!! अति सुन्दर पोस्ट .... बधाई.
जवाब देंहटाएंइस बार यह चमकता सितारा पूरे फरवरी माह में नजरों से ओझल रहा इस सितारे की चमक हमेशा बिख्रती रहे इसी शुभकामना के साथ
जवाब देंहटाएंbahut hi umda post,bdhai aap ko
जवाब देंहटाएंएक माह से अधिक समय बाद आपकी वापसी देखकर अच्छा लगा. कहानी में शब्द विन्यास और आत्मकथ्यात्मक शैली प्रभावित करती है. सुन्दर रचना के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंप्रवाहमयी कहानी ...कुछ जाने पहचाने से जीवन का द्वन्द .....
जवाब देंहटाएंलाखों तारे, आसमान में, एक मगर ...
जवाब देंहटाएं@ देख के दुनियां की दिवाली,दिल मेरा चुपचाप जला .......
हटाएंपश्चिमी क्षितिज,
जवाब देंहटाएंसूर्यास्त देखते ही बनता था,
आकाश में उड़ता हुआ
पक्षियों का समूह
दिन ढलने से पूर्व ही
अपने गंतव्य तक पहुंचना चाहता था !
अक्सर शांत स्वाभाव के
महासागर को उग्र होता देख
मछुवारों ने भी
अपनी-अपनी कश्तियों का रुख
तट की ओर मोड़ दिया था !
आकाश को छू लेने की होड़ में
लहरों का शोर,
किसी अनहोनी की ओर
संकेत कर रहा था,
और शायद यही वजह रही होगी
तट पर चहल कदमी करते हुए
सैलानियों का सैलाब,
धीरे-धीरे कम होता जा रहा था,
इन सबसे बेखबर
विक्रम की पथराई आँखें
रोज की भांति आज भी तलाश रही थी,
उस एकांकी सितारे को
जो असंख्य तारों के बीच में होते हुए भी
नितांत अकेला है !
एकाएक सागर की एक ऊँची लहर ने
तन्द्रा को भंग कर दिया...
सुदूर ब्रहमांड में टीमटिमाता हुआ
वह चिर-परिचित सितारा
अनायास इशारा करते हुए कह रहा था
बहुत देर हो चुकी विक्रम,
घर जाओ,
दश्त की वीरानियों में अकेला घर
खुद को भयभीत महसूस कर रहा होगा !!!!!
वाह भाकुनी जी, ये आपने कहानी सुनाई या काव्य ? भाई जी , बहुत सुन्दर ढंग से काव्य समायोजित किया है इस भाव पूर्ण कहानी में १ आपको भी होली की हार्दिक शुभ कामनाये !
@ एक साधारण सी पोस्ट को काव्यरूप देने हेतु आपका आभार व्यक्त करता हूँ....
हटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएं@मोनिका "मिष्ठी" जी !ब्लॉग भ्रमण हेतु आभार...
हटाएंbadiya vichar manthan...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन प्रस्तुति ,...
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट पर आना अच्छा लगा,...
मेरे पोस्ट आइये स्वागत है,....
NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...
कहीं कहीं अपनी सी कहानी लगी...एकदम जुड़ाव महसूस हुआ..
जवाब देंहटाएंपैगाम-ऐ-मुहब्बत यूँ आते हैं रोज अब भी ,
तादात दुश्मनों की बढती ही जा रही है...
क्या बात है...वाह!!
ज़िन्दगी की सच्चाई को छू कर गुज़रती है कहानी !
जवाब देंहटाएंशिल्प और भाव अच्छे हैं !
आभार !
blog par aakr utsaah bdhane ke liye shukriya
जवाब देंहटाएंस्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी
razrsoi.blogspot.co
@avanti singh ब्लॉग भ्रमण हेतु आभार...
हटाएंभगवान मां-बाप का साया हर बच्चे के सिर बनाए रखे। सोना बनने की प्रक्रिया तपाती अनिवार्य रूप से है।
जवाब देंहटाएंआपको भी होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंआप को और आपके पूरे परिवार को भी हमारी ओर से होली मुबारक हो
जवाब देंहटाएं**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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बहुत सुन्दर कहानी| होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
'विचार बोध' पर आपका हार्दिक स्वागत है।
@ब्लॉग भ्रमण हेतु आभार...
हटाएंबहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
@ ब्लॉग भ्रमण हेतु आभार...
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@ ब्लॉग भ्रमण हेतु आभार...
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआदरणीय पी.एस.भाकुनी जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत सुन्दर.....आपकी वापसी देखकर अच्छा लगा
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
wah....kya likhe hain.
जवाब देंहटाएंइस सार्थक कहानी के लिए बधाई स्वीकारें....
जवाब देंहटाएंनीरज
आपके ब्लॉग पर आज पहली बार आना हुआ....सो पुरानी पोस्ट भी पढ़ रही हूँ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेखन...
भावभीना...
सादर
अनु
अनु जी !आपका स्वागत है........
हटाएंnice
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