गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

...............?


५६ दिनों तक अस्पताल में जीवन और मृत्यु से जूझती अंतत: थक हार कर मृत्यु की आगोश में समां  चुकी दो वर्षीय मासूम पलक   की  दास्तान  अभी  हवाओं   में  गूंज   ही रही  थी  की बेंगलुरु  के  एक  अस्पताल  में एक  और  दो महीने की बच्ची आफरीन अपनी मासूम त्वचा पर सुलगती हुई सिगरेट की जलन को महशुस करने से पहले ही इस बेरहम दुनिया को अलविदा कह गई, पलक  हो या आफरीन ! दोनों की कहानी एक सी  है, दोनों के गुनहगार  कोई और नहीं बल्कि उनके अपने ही हैं, जो भी हो,  इन दोनों  मामलों में इंसानियत शर्मसार हुई है, .......और कही-न-कहीं मानवीय रिश्तों की विश्वसनीयता पर  भी सवाल उठाये जा सकते हैं,  कैसे कहूँ की ईश्वर तुम्हारी दिवंगत  आत्मा  को शांति   प्रदान   करे ?
                                                                                          
                          पलक ! 
                          ओह आफरीन 
                          मुझे  माफ़  कर  दो,
                          तुम्हारी  कहानी  मैं
                          लिख  नहीं  पाया 
                          क्योंकि !
                          तुम्हारे  पास 
                          वक्त  की  कमी  थी  
                          और 
                          मेरे  पास 
                          शब्द नहीं हैं.........  




             

14 टिप्‍पणियां:

  1. क्योंकि !
    तुम्हारे पास
    वक्त की कमी थी
    और
    मेरे पास
    शब्द नहीं हैं.........

    दुखद घटना.........

    मार्मिक भाव लिए सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट .

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  2. सच ही है ऐसी वीभत्स घटनाओं के लिए शब्द लायें भी कहाँ से.....?

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  3. सच है ऐसी शर्मनाक धटनाओ के लिए तो शब्द भी रूठ जाते है......

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  4. स्तब्ध कर देने वाली अभिव्यक्ति
    शुभकामनायें आपको !

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  5. ek chir khamoshi chha jaati hai dil par.... jaane kab mansikta badlegi aise logon ki...
    marmsparshi rachna ke liye aabhar!

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  6. उत्तर
    1. @... प्रसन वदन चतुर्वेदी जी आपका इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है.....

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  7. मेरे पास
    शब्द नहीं हैं.........

    दुखद घटना.....

    मार्मिक भाव लिए सुंदर रचना

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  8. ... कविता आपके दर्द को बखूबी व्यक्त कर पा रही है।

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  9. बड़े भैय्या,
    नमस्ते!
    शीर्षक ही ब्यान कर देता है....
    वीभत्स, दुखद, शर्मनाक.
    आशीष
    --
    द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!

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    उत्तर
    1. ...आशीष जी आपका इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है.....

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  10. तुम्हारे पास
    वक्त की कमी थी
    और
    मेरे पास
    शब्द नहीं हैं.........

    इन पक्तियों ने मन को झकझोर दिया । आपने अपनी संवेदना को बड़े ही सलीके से प्रस्तुत किया है । धन्यवाद ।

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