

"सुनो " एक अंतराल से खंडित वार्तालाप को पुन: जोड़ने का प्रयास किया मैंने!
"हूं ...... ! कुछ कहा तुमने ?
"अवश्य ! वह सामने मानव समूह देख रहे हो न? देखो ! कैसे गुनगुनी धूप का आनंद ले रहा है?
"हाँ! देख रहा हूँ, "हालांकि शब्द बेरुखे थे, किन्तु ध्वनी में कही-न-कही विष्मय एवं कौतुहल अवश्य छिपा था।
यूँ लगता है मानो लौह-सीमेंट निर्मित एवं पुरानी टूटी-फूटी क्राकरी के रंग-बिरंगे टुकड़ों से सुसज्जित भिन्न-भिन्न आकर-प्रकार एवं भावभंगिमा लिए हुए मानवाकृतियाँ समूह बनाये हमारे स्वागतार्थ खड़े थे, शायद हमसे संबाद स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे ।
अरे ....... अरे............तनिक देखो तो सही ! बंदरिया अपने नवजात शिशु को सीने से लगाये भागे जा रही है ..........नहीं .......! नही...........! कहाँ भागे जा रही है ? वह तो बंदरिया की एक निर्जीव आकृति भर है,
ठीक कहा तुमने ! वह तो एक निर्जीव आकृति भर है बंदरिया की ! किन्तु.......... ?
किन्तु यह विशालकाय अजगर ..........? क्या यह भी कोई............?
किन्तु यह विशालकाय अजगर ..........? क्या यह भी कोई............?
अरे भई कुछ नहीं है, शिल्पकार की शिल्प कला का अदभुद एवं बेजोड़ नमूना .....शायद इसमें जान डालना भूल गया होगा अन्यथा अब तक न जाने कहाँ गायब हो चुका होता।

इस वीरान जंगल में यह मानव निर्मित झोपडी-----? शायद कोई रहता भी होगा-----? उम्मीद है की अंदर के हालात मेरी शंका का समाधान कर पाएंगे--------
तनिक सोच-विचार के पश्चात् मैं झोपडी में प्रवेश में करता हूँ ----
झोपडी के अंदर का दृश्य देखने लायक था, यहाँ-वहां चारों कोने मकड़ी के जालों से आचाछादित जो की काफी पुराने जान पड़ते हैं, उधर एक कोने में बना मिटटी का चूल्हा, कुछेक अधजली किन्तु बुझी हुई लकड़ी के टुकड़े, यत्र-तत्र बेतरतीब बिखरे हुए धुल-धूसरित मिटटी के टूटे-फूटे बर्तनों को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है की अब तक इंसान सभ्यता के लिहाज से काफी तरक्की कर चुका था, अर्थात आदम युग काफी पीछे छुट चुका था।
"हूँ.......... सोच रहा हूँ सभ्यता के इस पड़ाव में इंसान का रहन-सहन, उसके तौर-तरीके कैसे रहे होंगे ?"
संघर्ष तो यहाँ भी कम नहीं थे.........?
इस वियावान जंगल में अकेला एक आदम दम्पति कैसे मुकाबला करता होगा खूँखार जंगली दरिंदों से ?
सदियों से वीरान पड़ी झोपडी को देखकर अनुमान लगाना भी मुमकिन नहीं था की आगे चलकर किस रूप में हुई होगी उस आदम दम्पति की परिणति ?
मैं जनता था मेरे इन सवालों का जवाब झोपडी की ये जर्जर दीवारें, और ये शेष-अवशेष भी नहीं नहीं दे पाएंगे, लिहाजा समय की उपयोगिता को समझते हुए अब मेरा यहाँ पर रुकना निरर्थक ही होगा।
सूरज सिर पर चढ़ आया था, उबड़-खाबड़ वन प्रदेश में हिंसक जंगली पशुओं से स्वयं को बचते-बचाते अब मैं सुरम्य वादियों में विचरण कर रहा था, पाषण युग से अब तक के इस सफ़र में तमाम खट्टे-मीठे अनुभवों को समेटते हुए एक नए युग में प्रवेश करना सचमुच बेहद सुकून भरा था, दूर-दूर तक फैली हुयी हरी-भरी घाटियाँ, यत्र-तत्र छितराए हुए से मानवीय बस्तियां, घर-आंगन में खेलते-खिलखिलाते बच्चे, चारों ओर लहलहाते खेत-खलिहान, नैसर्गिक सौन्दर्य एवं महान शिल्पी नेकचंद की कला एवं कल्पना शक्ति "राकगार्डन" का अंतिम पड़ाव, लौह-सीमेंट निर्मित एवं रंग-बिरंगी क्राकरी के टुकड़ों से सुसज्जित एक बेंच में बैठकर तनिक विश्राम के पलों में सामने झुला झूलते हुए बच्चों को देख किसी का भी मन-मयूर डोलने लगता है......? सचमुच कितनी सुंदर है यह रचना........
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(सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ स्थित पद्मभूषण महान शिल्पी नेकचंद की कला एवं कल्पना शक्ति का अदभुत संगम "राकगार्डन" के समानान्तर लिखी गई एक पोस्ट जिसे कहानी के रंग में रंगने का प्रयास मात्र किया गया है।
_____________ ( p_singh67@yahoo.com ) ____________
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(सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ स्थित पद्मभूषण महान शिल्पी नेकचंद की कला एवं कल्पना शक्ति का अदभुत संगम "राकगार्डन" के समानान्तर लिखी गई एक पोस्ट जिसे कहानी के रंग में रंगने का प्रयास मात्र किया गया है।
_____________ ( p_singh67@yahoo.com ) ____________
बहुत साल पहले जब विद्यार्थी था तब इस जगह के दर्शन किये थे, फिर करीब ८-१० साल बाद सपरिवार गया तो अहसास हुआ कि इस रुक गार्डन में अनेक तब्दीलिया हो गयी थी ! मैं इस भ्रम में था कि इसे बिना छेड़े ही ज्यों का त्यों रखा गया है !
जवाब देंहटाएंचौरासी में था वहाँ, चार वर्ष का काम |
जवाब देंहटाएंनेकचंद की कला का, हुआ चतुर्दिक नाम |
हुआ चतुर्दिक नाम, लगाया फिर से चक्कर |
करे प्रभावित लेख, बड़ा आभारी रविकर |
अजगर हाथी शेर, धरा के सारे वासी |
भरे पड़े हैं ढेर, लाख योनी चौरासी ||
आपने सही कहा,,,, जो बात इस जगह है कहीं पै नहीं...कम से कम ऐसी जगह मुझे तो कही देखने को नही मिली,,,,मनमोहक प्रस्तुति,,,,,
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
सराहनीय एवं रोचक ढंग से प्रस्तुत पोस्ट....
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रशंसनीय प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकलाकार हर किसी में होता है मगर नेकचंद ने साकार किया...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति और वर्णन ..
जवाब देंहटाएंयह गार्डन देखा हुआ है ....कमाल की क्लाकृतियाँ बनाई हैं ..... आपने उनका वर्णन भी बहुत कलात्मकता से किया है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
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